शुक्रवार, 10 अगस्त 2012

भगवान कृष्ण : आज के परिप्रेक्ष्य में..

  
                               
हिन्दू पंचांग के भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की अष्टमी के दिन अवतरित हुए भगवान श्रीकृष्ण की याद आते ही सर्वप्रथम हम सबके मस्तिष्क पटल पर माखन खाते नटखट कान्हा....या फिर....बंसी बजाते मुरलीधर की छवि उभरने लगती है.....या हम युवाओ के लिए उनका....एक आदर्श और दिव्य प्रेमी की परिकल्पना....वाला स्वरुप.....चाहे कोई भी रूप हो....मनमोहक तो वो हैं ही ! :) कितने ही रूप हैं उनके.....हम में से शायद अधिकांश ने.. भारतीय संस्कृति की धरोहरों में से एक महाभारत ,गीता,विष्णुपुराण में उनके इन रूपों के बारे में पढ़ा होगा......जन्मस्थली(मथुरा कारावास ), पालन और लीलाओं का केंद्र गोकुल....तो प्रेम स्थली वृन्दावन तो द्वारिका में एक प्रजापालक के रूपों में इन्होने अपनी लीलाएं दिखायीं हैं....एक आदर्श मित्र जिन्होंने मित्रता की मिसाल कायम की .....आज भी ऐसी मित्रता जिसमें ....न तो कोई भेदभाव हो...... मित्र को बरसो बाद देखकर आंसुओं के सैलाब को न रोक सके.....अपने राजा होने का भी भान न रहे...सिर्फ मित्र को मिलने की भावाविहलता हो.....नही मिल सकती है.....संभवतः स्वयं मुझे भी ये नही पता कि क्यूँ मुझे भगवान राम और कृष्ण जो एक ही परमात्मा के दो स्वरुप हैं....में कृष्ण आज के समय में अधिक व्यावहारिक लगते हैं....खैर हम मनुष्यों की इतनी बिसात कहाँ कि हम अपने भगवान को चुन सकें.....जहाँ उनके राम स्वरुप का कोई अलग महत्व और उद्देश्य था...वहीँ कृष्ण रूप का....भी था....पर....जहाँ कान्हा...की व्यावहारिक ,समयानुसार और परिस्थिति अनुसार प्रतिक्रिया करने का ही आज सन्दर्भ है....क्यूँ अब कुछ भी बदलाव लाने के लिए.....हमें ऐसे ही सोचना ही होगा..जहाँ बात कृष्ण की हो और प्रेम का ज़िक्र न हो.....ऐसा कैसे हो सकता है भला.....प्रेम की पवित्रता ,दिव्यता,और प्रेम ,समर्पण की वास्तविक परिभाषा तो कृष्ण जी से ही मिलती है हमें.....वो रिश्ता जो किसी सांसारिक मान्यता नही चाहता था.राधा कृष्ण का....तो फिर रुकमनी के एक बार स्मरण करने पर....उसे ...बालगोपाल के रूप में माखन चुराने वाले....और....दही की हांडियां फोड़ने वाले.....कान्हा....हो या फिर.....भगवद गीता में उल्लेखित अर्जुन को...अपने सांसारिक संबधियों से मोह के कारण क्षुब्ध होता देख.....कर्तव्य बोध कराने वाले.....उसे गलत , अत्याचार और अधर्म के खिलाफ हथियार उठाने के लिए प्रेरित करने वाले.....हो....या मीरा जैसी तन मन धन से स्वयं को श्री चरणों में अर्पित कर चुकी भक्त के आराध्य हों....जो अपनी भक्त की एक पुकार पर....उसे मुक्ति दिलाने आ गये हों......चाहे....गुरु संदीपनी के शिष्य के रूप में.....भले ही ज्ञान का आरम्भ हों,स्त्रोत हों पर....मनुष्य रूप धरा है तो....भलीभांति शिक्षण ग्रहण किया.....बालसुलभ क्रीड़ायें की ....आज राम के आदर्शों की भाषा शायद निर्लज्ज हो चुके.....हम मनुष्यों को न समझ में आये....पर अब धरती पर अत्याचारों का सामना योगी पुरुष कृष्ण के तरीके से करने का वक़्त है.....और....एक और बात....जो शायद सीता माँ .के साथ हुए अन्याय के कारण मुझे दुखी करता है.....कि शायद एक आदर्श और प्रजा का रक्षक होने में कहीं उनका पति वाला रूप जो अपनी अर्धांगिनी की पीडाओं को नहीं समझ पाया.....वहीँ कुछ लोग कहते हैं.....कि कृष्ण भगवान् ने प्रेम किसीसे किया.....विवाह किसीसे.....तो कुछ कहते हैं......१६ हज़ार पटरानियों वाले कृष्ण रसिक मिजाज़ के थे.....जो भी हो....भगवान् की लीलाओं और उनके अवतरण के अलग अलग उद्देश्य तो थे ही.....और मनुष्य रूप में वे एकदम निष्कलंक ,सर्वोत्तम तो नही ही हो सकते थे.....पर जो भी हो अब समय भी त्रेता युग का नही रहा.....कलियुग में पुनः द्वापर की पुनरावृत्ति का काल आ गया है......क्यूँकी अब घी सीधी उंगली से निकल ही नहीं रहा है.....तो कृष्ण की टेढ़ी तरकीबों से निकलना ही पड़ेगा न......गोकुलाष्टमी की शुभकामनाएं.....! कृष्ण को अब जीवन में उतारने का वक़्त है.....समाज में लाने का वक़्त है.....जीवन के हर रूप का आनंद उठाएं......शरारतें करें......पर दूसरों की फजीहत के दांव पर नही.....:):)

2 टिप्‍पणियां: