शुक्रवार, 14 सितंबर 2012

हिन्दी - राष्ट्रभाषा -एक चिंतन

हिंदी तो अधिकांश भारतीयों की मातृभाषा है......हिंद या हिन्दुस्तान की जो भाषा हो उसे हिंदी कहते हैं पर इसमें दो राय नही कि इसी भारतवर्ष की २२ आधिकारिक भाषाएँ भी हैं......जो इसे समूचे राष्ट्र की एक भाषा नही बनने देती.....खैर वो तो हमारे देश के वैविध्य और उदारता का प्रतीक है......एक ऐसा देश जो भाषाओँ के गुलदस्ते में भी हर रंग के फूल समेटे हुआ हो ....पर हाँ अभी भी....दक्षिण और पूर्व के राज्यों में मातृभाषा उनकी क्षेत्रीय भाषाएँ हैं.....और हो भी क्यूँ न.....जिस भाषा में पहला शब्द बोलते हैं......जो हमारे संवाद.....की शुरुआत होती है.....जिसे हम खाते पीते....सोचते....बोलते....लिखते.....सुनते.....कहते....पढ़ते हैं......वह भाषा हमारी मातृभाषा होती है.....
भाषा न हो तो...व्यक्ति का स्वयं का....और हमारा सभी का नुकसान होगा.....क्यूंकि....वो अपनी बातें और विचार नही व्यक्त कर पायेगा ....हो सकता है....इस कारण वो अवसाद में चला जाए.....क्यूँ इशारों में समझाना ....अपने दिल को उड़ेल देना मुश्किल होता है.....कई बातें सिर्फ बात करके ही खुल कर रखी जा सकती हैं.
....और बाकि सबका इसलिए क्यूंकि.....अगर किसी मुद्दे पर....उसे कोई अच्छा....विचार आया हो....तो उस से हम वंचित रह जायेंगे......तो तात्पर्य हुआ....कि भाषा- वो सबसे प्यारी और....सहूलियत वाली जिसमे हम अपना दिल सबके सामने खोल सकें......जो बात प्रेषित करनी है....वो बात सामने वाले तक पहुँच सके.....और सबसे बड़ी बात......भाषा का मूल भूत उद्देश्य पूर्ण हो सके......
इसीलिए हिंदी दिवस है इसलिए.....सिर्फ हिंदी में ही बोलो हर जगह....ज़रूरी नहीं....पर....कम से कम....जो देश की पहचान हो उसे तो न भूलें हम.....जब अन्य राष्ट्रों के प्रमुख अपनी भाषा को नही भूलते तो हमें क्यूँ बाहर जाकर उनकी भाषा में बोलने का बुखार चढ़ जाता है....जब अनुवादकर्ता भी मौजूद होते हैं.....अंग्रेजी....९० सालों की परवशता के पुराने ज़ख्मों को कुरेदती रहती है.....और.....हिंदी....का प्रयोग हमें हमारी शान करने नही देती.....जिन्हें तकलीफ है....पर सीखना चाहते हैं....वे प्रशंसा के पात्र हैं....पर जो आते हुए भी....हिंदी में बात नही करते या हिंदी में पूछे हुए प्रश्न का उत्तर अंग्रेजी में देना....गर्व का विषय समझते हैं....वो भी अनौपचारिक वार्तालाप में....ठिठोली में....भी....तो कई बार हिंदी को राष्ट्रभाषा कहते हुए.....दो बार सोचना पड़ सकता है....खैर अब तो प्रवाहमान समय के साथ हिंदी हिन्दुस्तान की भाषा रह भी गयी है या नही....वाद विवाद का विषय है...
.पर हाँ....कुछ भी हो....अभी भी समाज का थका -कुचला वर्ग या....कहें अधिकांश मध्यमवर्गीय समुदाय हिंदी का गर्व से प्रयोग करता है.....हमारे जैसे ज्यादा पढ़ लिख गये.....बड़े बड़े पदों पर बैठे हुए...हम लोग....भले ही....अंग्रेजी....के गुमान में....हिंदी बोलना लिखना शायद कमतरी का प्रमाण समझते हों......कहते हों....अरे अच्छा इम्प्रेशन नही पड़ेगा.....सही भी है....क्या करें.....वक़्त की मांग है.....
सभी हिन्दवासियों को आज से शुरू हो रहे हिंदी पखवाड़े की हार्दिक शुभकामनाएं.....आशा है....हम अगले वर्ष हिंदी का अधिक प्रयोग कर पाएंगे....और कभी तो ऐसा होगा....कि भाषा के लिए दिवस मनाने की ज़रुरत नहीं पड़ेगी.....:)


                                                                                                                  - स्पर्श  चौधरी 

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