गाकर गीत विरह की तटिनी
वेगवती बहती जाती है
दिल हलका कर लेने को
उपलों से कुछ कहती जाती है।
तट पर एक गुलाब सोचता
"देते स्वर यदि मुझे विधाता
अपने पतझर के सपनों का
मैं भी जग को गीत सुनाता।"
गा-गाकर बह रही निर्झरी
पाटल मूक खड़ा तट पर है।
गीत अगीत कौन सुंदर है?
बैठा शुक उस घनी डाल पर
जो खोंते पर छाया देती।
पंख फुला नीचे खोंते में
शुकी बैठ अंडे है सेती।
गाता शुक जब किरण वसंती
छूती अंग पर्ण से छनकर।
किंतु शुकी के गीत उमड़कर
रह जाते स्नेह में सनकर।
गूँज रहा शुक का स्वर वन में
फूला मग्न शुकी का पर है।
गीत अगीत कौन सुंदर है?
दो प्रेमी हैं यहाँ एक जब
बड़े साँझ आल्हा गाता है
पहला स्वर उसकी राधा को
घर से यहाँ खींच लाता है।
चोरी-चोरी खड़ी नीम की
छाया में छिपकर सुनती है
'हुई न क्यों मैं कड़ी गीत की
बिधना' यों मन में गुनती है।
वह गाता पर किसी वेग से
फूल रहा इसका अंतर है।
गीत अगीत कौन सुन्दर है?
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