आज महिला दिवस है, जो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मनाया जाता है। सबसे पहले तो मन में ये सवाल उठा कि महिला दिवस है, पर पुरुष दिवस तो कभी होता नहीं, फिर एहसास हुआ कि पुरुषों के लिए दिवस की ज़रूरत क्यों पड़ने लगी? सारे दिवस तो पुरुषों के नाम ही होते हैं वैसे भी। भारत की बात करें, तो हमारे देश के कुछ इलाके ऐसे भी हैं जहाँ महिलाओं को उनके हिस्से की ख़ुशी नहीं मिलती, जहाँ बच्चियों को पैदा होने का भी हक नहीं होता, जहाँ औरतों की दुनिया चार दीवारों में ही सिमट कर रह जाती है।
हाँ तस्वीर बदरंग तो है , पर मुझे उम्मीद है कि एक दिन ऐसी महिलाओं के दिन भी फिरेंगे। तब तक, उनकी हालत बयान करती एक कविता :
वो कहाँ जानती है
महिला दिवस क्या होता है
उसके लिए तो
रोटियों कि गोलाई ही
उसकी सफलता का पैमाना है।
उड़ने के ख्वाब तो
देखे होंगे उसने भी
उसके पर कुतरने वालों को
कहाँ उनका अंदाज़ा है।
एक अधूरी कहानी है वो
छीन कर उसके हाथ से
उसकी कलम, औरों ने
लिखा उसका फ़साना है।
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