रविवार, 9 जून 2013

सुहानी बरसात

स्कूल से भागते दोढ़ते घर को आते
बैग फेक, वापस भीगने जाते!
माँ पीछे से पकड़ने आती,
और अच्छी वाली फटकार लगाती!
उस फटकार को मे आज भी याद करता हू
वेसी ही सुहानी बरसात की मे आस करता  हू
जिद करके पकोड़े बनवाते,
और बहन के हिस्से का भी खा जाते!
फिर शुरू करती वो रोना,
और बोलती ”माँ! भैया को देखो ना!”
उसे चिढ़ाने को मे आज भी याद करता  हू
वेसी ही सुहानी बरसात की मे आस करता  हू
जब भीगने से लग जाती थी सर्दी,
माँ पिलाती थी दूध मिला के हल्दी!
हम आनाकानी करते उसे पीते थे,
क्योकि माँ की प्यार भरी डांट से डरते थे!
उस प्यार भरे दूध को मे आज भी याद करता हू,
वैसी ही सुहानी बरसात की मे आस करता हू
                                                     -अर्नव पूरी 

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