सोमवार, 22 जुलाई 2013

आपकी कलम से # 7 " प्यार की परिभाषा "

                                                       " प्यार की परिभाषा "


LOVE कहो या प्यार , मानो या करो इनकार
पर फिर भी कोई इसकी परिभाषा नहीं है |
प्यार को करने के लिए इजहार
कोई भाषा नहीं है ||

जिस भी रूप में , चाहे छाँव में या धूप में
सागर के किनारे या प्रेम पत्र के सहारे |

भींग कर बारिस में या खुले आसमान में
चलती बस में या बस अकेले सुनसान में ||

प्यार का इजहार लोग करते हैं ,
साथ निभाने की कसमे खाते हैं |
वैसे आज के परिवेश में देखें
तो बहुत कम लोग ही इन कसमों को निभाते हैं ||

प्यार समय के साथ नहीं बदला है,
कल भी मीरा कृष्ण की दीवानी थी |
आज भी दीवानी है पर हममे अब वो दीवानगी नहीं रही है |
मालूम है हमने बहुत कड़वी बात कही है ||

पर सच्चाई यही है बदल गयी है हमारी सोच और हम
कुछ पल की अभिलाषा बस होती है हमे
और फिर क्या प्यार हो जाता है खतम !!!
अरे भाई ! प्यार कोई अभिलाषा नहीं है !!

कितनो को रोते देखा है , तडपते देखा है ,
गुस्सा करते भडकते और बहकते देखा है
शराब के बूंदों में खुद को कैद होते देखा है
जिंदगी से हारकर अकेले रोते देखा है !!!!

प्यार तो एक वो एहसास है
जो लाता आपकी खुशियों को आपके पास है
प्यार इस ढलते हुए समाज में एक रौशनी है
एक अनमोल आशा है , प्यार कोई निराशा नहीं है !!

उम्मीद है आप प्यार को समझें और सही तरह से प्यार करें
जरुरी नहीं आज का ही दिन सब कुछ और जल्दबाजी करने का हो ,
आराम से सोचें समझें
फिर बड़े आराम से पकड़ कर हाथ , निभाने का साथ
कुछ ऐसे अंदाज में प्यार का इजहार करें !!!

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