क्या आपकी कलम भी हिंदी में कहानी , कविता , ग़ज़ल , आलेख , जीवनी - संस्मरण , यात्रा वर्णन इत्यादि लिखने को मचलती रहती है?
अगर हाँ, तो 'स्पंदन' नामक हमारे सुन्दर प्रयास से जुड़ने के लिए आपका स्वागत है ।
'स्पंदन' IIT-Bombay की बहुचर्चित वार्षिक हिंदी पत्रिका है । अपने द्वितीय संस्करण की प्रतीक्षा करते इस प्रयत्न के भाव को गहराई से समझने अथवा इसके बारे में विस्तार से जानने के लिए , कृप्या निम्नलिखित links का रुख़ करें :-
१) Facebook Page
२) Video विज्ञापन 1
३) Video विज्ञापन 2
४) प्रचलित समाचार पत्रों में 'स्पंदन' का उल्लेख
कृप्या अपनी प्रविष्टियाँ iitbspandan@gmail.com पर भेजें और हम सबको अपनी रचनाओं का लुत्फ़ उठाने का मौका दें ।
धन्यवाद ,
टीम स्पंदन
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धन्यवाद ,
टीम स्पंदन
क्या सभी भेजी हुई रचनाएँ वेबसाइट पर डाली जाती हैं या सिर्फ चुनी हुई रचनाएँ?? मैंने २७ जनवरी को एक रचना भेजी थी जिसको मैं वेबसाइट पे नहीं ढूढ़ पा रहा हूँ !! कृपया जानकारी दें!!
जवाब देंहटाएंधन्यवाद!!
विवेक सराफ
M. Tech (Electrical,IIT BOMBAY)
माफ़ कीजियेगा विवेक,शायद भूलवश आपकी रचना हमें मिली नहीं. क्या आप दोबारा नए पतों पर अपनी रचनायें भेजने का कष्ट करेंगे?
हटाएंYah hindi saahitya me mera pehla prayaas hai. Krupya mukhe behtar likhne me mada kare
जवाब देंहटाएंAnjaani Manzil
Duniya me ye jung hai hote,
hoti hai takraar.
Par dur kahi ek manzil hai,
jispe milta hai pyaar
Uss manzil ko tha khojna chahaa,
par raha tha main nakaam.
Manzil tak to pahuch na paaye,
yahi ho gayi sham.
Kucch jazba tha is dil me,
jo soch me tha le jaata.
Iss pyaar naam ki cheez se kya
hai apna bhi kuch naata.
Soch me duba rehta tha,
har cheez me thi maayusi.
Kuch dard utha tha dil me
thi aag pe tapte lahu si.
Jab dil jawab de gaya tha
mashtishq ne rah dikhayi.
Kahi khudse dur to nahi ho raha
ye baat samajh me aayi.
Umeed liye main nikla
khojne atit ki khai.
Bite kal ne tab mujhko
Kuch aisi baat dikhai
Kuch log the iss jeevan me
jinse ye sawarke aaya tha.
Khushi thi, utsah tha
ek alag pehlu dikhlaya tha.
Kya wo kuch aur tha?
maine yu ret pe likha.
ya tha sabab-e-ishq
jo mujhe nahi dikha.
Fir laut chala unke paas
jinhone itna pyaar diya tha.
Manzil to wahi thi
jaha se safar shuru kiya tha.
मंज़िल तो वही थी, जहाँ से सफर शुरू किया था। वाह! वाह!
हटाएंlajawaab!!!...pehle prayaas ke hisaab se aapne yah kavita bahut achchhi likhi hai...aasha hai..aap ki kalam se humein aur bhi kayin pyaari kavitayein padhne ko milengi...kripaya...apne is prayaas ko jaari rakhein...
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