मंगलवार, 31 जुलाई 2012

सब कहते हैं..तस्वीर गयी है बदल....

सब कहते हैं..तस्वीर गयी है बदल....
पर मेरे लिए तो ज़माना वहीँ का वहीँ है....
सब कहते हैं....मैं उड़ने लगीं हूँ आसमां में...
पर फिर खुद को मैं पाती हूँ....औंधे मुंह ज़मीं पर.....
सब कहते हैं....मैं भी...गुनगुनाने लगी हूँ...
पर फिर अपने आप ही....को...चीखता हुआ पाती हूँ....
सब कहते हैं.....मेरा भी...हाँ मेरा भी....वजूद है...अब...हाँ अब...!
अगले पल ही मैं....खुद को....नेस्तनाबूद पाती हूँ....
सब के लिए मैं ....हो रही हूँ...सशक्त....
लिख रही हूँ.....बुलंदियों की  इबारत....
कर रही हूँ....बादलों से....बातें.....पर....
पर.....क्या मुझसे पूछेगा कोई.....जानेगा कोई.....?
कि वक़्त बदला.....सरकारें बदलीं. हम भी बने आधुनिक.....
पर जनाब! हमारी...वो....पुरुषवादी....सोच...!
..जी....वो न बदली  थी...न बदली है....!! 

पर क्यूँ मुझे....लग रहा है यूँ....
कि....मेरे परों पर शायद...उन्हें हो गया है..यकीं...
मुझसे भी ज्यादा कहीं....
तभी तो...ये खौफ..कि....मैं उनसे ऊँची न निकल जाऊं कहीं.....!!
और....फिर...मेरे....इन  खूबसूरत पंखों....को....
लगें हैं....वो....नोचने....बिखेरने.....!
पर अनजान हैं....वो.....इस बात से.....नावाकिफ है....इस....जज़्बात से....
मैं....तो.छू ही  लूंगी....अपनी मंजिलों को....
क्यूंकि....मैं पंखों से न सही.....अपने ज़ज्बे.से भरूँगी....उड़ान....
और फिर...शायद...उनका.. ये दुस्वप्न ...आ खड़ा...हो सामने...बनके कड़वा सच.....
और वो पाएं...मुझे अपने से भी....आगे....ऊपर यूँ ही...
पर...मैं उनके जैसे.....न बनूँगी....
मैं....वहां से भी....मुस्कुराऊँगी..और.... हाथ बढा...
खींच लूंगी.....ऊपर ही उन्हें भी......और अपने साथ ही...
पाएंगे...वो मुझे....हर लम्हा.....हर पल....
क्यूंकि....मैं....सृष्टि...जननी हूँ....
जानती हूँ मैं....कि गाडी दो पहियों से ही चलेगी.....
जब दोनों....ही...अलग स्वतंत्र.....पर एक साथ....
चलेंगे....तब. ही .हम  सबका अस्तित्व  होगा.....!!

मित्रों....यह पहली मर्तबा है....जब....मैंने अपने विचारों को.....आप तक पहुँचाने के लिए.....कविता में पिरोने का धैर्य रखा....दरअसल....मैं गुवाहाटी में हुई....शर्मनाक....हादसे...के बारे में कुछ पढ़ रही थी....और...देश में औरतों पर...लगने वाली बंदिशों के बारे में भी......तो बस यूँही....आने लगी मन में ऐसी पंक्तियाँ....तो लिख डाला....वैसे....तो वाणी में.....बड़े बड़े दिग्गज कवि हैं....तो ज़ाहिर हैं.....मेरा यह प्रयास....सामान्य लगे....पर अगर मेरा इस रचना को लिखने....का उद्देश्य पूरा हो गया तो.....मुझे संतुष्टि मिलेगी....मेरे भाव आप तक पहुंचे....बस यही काफी है.....!



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