बुधवार, 1 अगस्त 2012

'पिंजर'


हिंदी फिल्मों में बहुत कम ही इतने संजीदे मुद्दे पर बात उठाई जाती है पर अमृता प्रीतम के उपन्यास पर 
आधारित इस उम्दा.फिल्म'पिंजर' को देखने के बाद कुछ ऐसा ही आक्रोश मेरे मन में भी उमड़ता 
है............औरत की आबरू के साथ खिलवाड़ माफ़ कीजियेगा,मेरे मित्रों....पर सदैव से पुरुषों के रौब को 
सिद्ध करने के लिए होता है.....और ये खिलवाड़ औरत की आत्मा के साथ 'बलात्कार ' के रूप में होता 
है.....क्यूंकि उस वक़्त पौरुष के मद में चूर होकर वे यह भूल जाते हैं.....कि सती शिव का ही अंश 
हैं.....जितनी तकलीफ कभी भी मर्द को होती है......उतनी ही तकलीफ औरत को भी होती है......तो ऐसा 
करते वक़्त सम-वेदना ही नही रहती कि...खासकर हमारे भारतीय समाज में जहाँ स्त्री की इज्ज़त बहुत 
मायने रखती है.....वहां...पुरुष की एक 'असंयमित और वहशी हरक़त ' उसका सब कुछ खत्म कर देती 
है......जहाँ तक बात कन्याभ्रूण हत्या का है..... आप लोग मातृभूमि.....-a nation without women 
देखिएगा.....देखके दिल दहल जायेगा.....क्यूंकि अब ऐसा ही होने वाला है भारत में.....कुलमिलाकर पुरुष 
और स्त्री दोनों के लिए अत्यंत समस्यात्मक परिस्तिथियाँ बनने वाली हैं.....ताज्जुब कि बात तो ये और भी 
होती है कि बड़े बड़े महानगरों में कन्या भ्रूण परिक्षण केंद्र ज्यादा फलफूल रहे हैं.......शिक्षा और रुतबे का 
मतलब बेटी को मरने से ही है.....तो उससे तो वो आदिवासी भले जिनके यहाँ बेटियों की संख्या प्रति पुरुष 
(मध्यप्रदेश ) अच्छी खासी है.....आशा है हम अपनी शिक्षा के मद में आकर ऐसा नही 
करेंगे........क्यूंकि.....पता नही....सब तो ऐसे नही होते....पर जब मैंने पढ़ा कि आईआईएम के छात्र ने 
अपनी पत्नी को दहेज़ के लिए मार डाला.....तो विचलित हो गयी....लगा ऐसी उच्च शिक्षा....सर्वोत्कृष्ट 
शिक्षा का क्या फायदा....खैर बात निकली है तो दूर तलक जायेगी......इस मुद्दे पर बात की जा सकती 
है.....और एक ख़ास बात आप सब से.....खासकर बन्दों से.....किसी से व्यक्तिगत रूप से नही....अपने 
wall पर लड़कियों या स्त्रियों के बारे में अमर्यादित या असभ्य जानकारी या चित्र न डालें ....क्यूंकि ये मुद्दा 
मजाक के लिए नही हैं......facebook जिससे हम पल पल जुड़े हैं.......उसपर तो कम से कम न 
करें...काफी विस्तृत टिप्पणी हो गयी........:पर विषय ही कुछ ऐसा है रहा नही जाता.....

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