रविवार, 19 अगस्त 2012

आज़ादी के 65 वें पायदान पर खड़ा भारत और एक भारतीय...

                        
                               हाथों में गीता रखेंगे ,
                                   सीनों में कुरान रखेंगे.,
                              मेल बढ़ाये जो आपस में...
                              वहीँ धर्म ईमान रक्खेंगे,
                              अमन की एक अज़ान रखेंगे....
                              काबा और काशी भी होगा...
                             पर सबसे पहले हिंदुस्तान रक्खेंगे !!

सर्वप्रथम तो ओलंपिक  पदकों की दौड़  में दोगुनी छलांग मारकर छः पदकों से देश का सीना सुसज्जित करने उन जांबाज़ ,शानदार,नायब,प्रतिभागियों को सादर धन्यवाद और बधाई...जिनमें दो महिलाएं भी शामिल हैं.....! वहीँ कल दिवंगत हुए महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री विलासराव देशमुख को श्रद्धासुमन सहित सादारांजलि. तो आइये बात करते हैं कुछ आज़ाद भारत की,कुछ आज़ादी,तो कुछ 'गुलाम' भारत से आज़ादी की !!
                    सबसे पहले तो यह बताइए कि  आज़ाद भारत की 65 वी सालगिरह पर आप सब कैसा महसूस कर रहे हैं....जनाब! आप ने अपनी शैय्या त्यागी या अभी भी भगत सिंह और गाँधी से मुलाकात फरमा रहे हैं....! अगर 'जाग ' रहे हों तो थोडा मेरे साथ विचार विमर्श कर ही लीजिये ...! आइना दिखा देते हैं खुद को,खुद की सरज़मीं को ! दरअसल विगत वर्ष तक जब भी आपसे बातें करती थी....मुझे मेरे एक मित्र ने चिन्हित किया....कि मैं देश की नकारात्मक छवि देखती हूँ....पर मेरा तर्क था कि जो सच है उसे मैं लोगों के सामने पेश ही कर सकती हूँ....पर इस एक सालाना अनुभव ने....मेरे मस्तिष्क में कुछ विचारों को रोपित किया.....मुझे एक आशावादी दृष्टिकोण दिया! आमिर के शो -सत्यमेव जयते सिर्फ एक माध्यम था शायद लोगों को कडवे और मीठे सचों से अवगत कराने का; जिससे ये पुष्टि हुई कि अगर जिस देश में एक छात्रा की इज्ज़त सरेआम सड़क पर बेपर्दा हो जाती है तो वहीँ एक ऐसी ही बलात्कार की शिकार लड़की 'प्रज्ज्वला' की शुरुआत करके देह व्यापार से सैकरों लड़कियों की इज्ज़त बचाती है .......
                 मुझ से,आप से ,हम से बनता है यह देश.....एक दूसरे के मत्थे ठीकरा फोड़ने से काम नही चलेगा.....जातिप्रथा (मैला उठाने की प्रथा -उम्मीद करती हूँ जल्द ही इस अमानवीय प्रथा पर रोक लगेगी...)महिलाओं ,बच्चों से जुड़े कोई भी दुष्कृत्य ,अमानवीय,अनैतिक ,हिंसक,दुराचारी,प्राकतिक और राष्ट्रीय संसाधनों का अवमूल्यन और अपमान,बड़ों की उपेक्षा,....आदि ये तो कुछ विषय जो देश के समक्ष उठाये गये.पर जो भी हो....सवाल शुरुआत का है जो हो गयी है....तो दोस्तों मेरा हमेशा विश्वास रहा है कि कहीं न कहीं हर भारतीय अपने भारत से उतना ही प्यार करता है जितना मैं.....या और कोई देशवासी....! तो चलिए हम निकल पड़ते हैं इस सुन्दर परिकल्पित भारत के निर्माण की दिशा में!! :)
                                दोस्तों....हम में से अधिकांश जन यही सोचते हैं कि क्या कर लेंगे हम अकेले...यह देश तो बर्बादी के रास्ते पर   बढ़ा  चला जा रहा है.....बेहतर है जो हो रहा है होने दो.....! पर वक़्त अब देश के अनगिनत शहीदों को उनकी शहादत  का ऋण चुकाने का है....(दरअसल इस वक़्त पृष्ठभूमि में लता जी का सदाबहार 'ए मेरे वतन के लोगों....जो शहीद हुए हैं उनकी ज़रा याद करो कुर्बानी....में...गुंजायमान है.....और मैं भी गुनगुना  रही हूँ......:)घबराइये नही अन्ना जी के आन्दोलन में पुलिस की लाठी का शिकार बनने को नही कह रही हूँ.....वह कार्य तो आप हम जैसे साधारण लोगों से  तो होने वाला  नहीं ! तो उठ खड़े होइए ,निकल पड़िए अकेले ही.... कारवां खुद-ब-खुद बनता चला जायेगा....एकला चलो रे....भेड़ें  झुण्ड में चलती....हैं.....सिंह  अकेला....!!  
              आप जहाँ हैं वहीँ से शुरुआत कीजिये....वक़्त निकालिए....देश के लिए....और उसे समाजसेवा कहकर उसका मज़ाक मत उड़ाइए ....एक ऋण है उस समाज का जो आपकी परवरिश का गवाह रहा है.....,वह ऋण चुकता करने का माध्यम है....छोटा सा....! 
             कल हमेशा की तरह मुझे' अभ्यासिका' में पढ़ाने  जाना था.,...पर मुझे वाइरल  बुखार ने जकड रखा है....घर से भी ऐसी अवस्था में जाने की अनुमति न दी गयी.....पर फिर एक मित्र के स्नेहपूर्ण आग्रह पर मैं मानों स्वतः स्फूर्त हो उठी.....लगा जश्न-ए-आजादी  की पूर्व संध्या पर इससे अच्छा  मैं क्या कर सकती हूँ.....भला.....!
           घटना का लब्बो लुवाब यह है कि जब इस देश में २० साल का लड़का कॉलेज ख़त्म होने के बाद एक मुफ्त शिक्षा के लिए स्कूल चला सकता है  तो क्या थोडा कष्ट  उठाकर मैं उनके लिए इतना नही कर सकती.....(अरे नही आप को स्कूल खोलने को नही बोल रही हूँ.....:))क्यूंकि हम ही वो मतदाता होते हैं....जो विजेता दल चुने जाने के बाद निराश होते हैं.....फिर गली,नुक्कड़,चाय के ठेलों,चौपालों.....या शतरंज की बिसात पर बैठकर राजनीति की बरसों से चली आ रही रीत को ,ढर्रे को बेहिसाब गालियाँ देते हैं पर जब मतदान कि बारी आती  है तब....या तो मतदान करने ही नहीं जाते या फिर.....उम्मीदवार  की योग्यता,चरित्र,पृष्ठभूमि की पुष्टि किये बिना....किसी विशेष दल के प्रति अंधभक्ति के चलते....उसी के उम्मीदवार  को शान से मत  दे देते हैं....तो मुद्दा यह है कि जब बारी करने की आती है तो हम हाथ पर हाथ धरे देखते रह  जाते हैं....! 
        अन्ना और उनकी टीम में चाहे जो कितनी ही खामियां गिनाएं  पर एक बात है कि राजनैतिक गलियारों में उतरने का और सच्चे और अच्छे लोगों को उतारने का  निर्णय....जनता को सजग करने का निर्णय....आज वास्तव में प्रासंगिक है....! मेरी ही तरह इस निर्णय पर संदेह करने वाले मित्रों को मेरा सुझाव है कि वे सी-एन-एन  पर 'आप की अदालत' की उन कड़ियों  को देखें....जिसमें अन्ना ,किरण बेदी. और केजरीवाल....से प्रश्न किये गये हैं. क्यूंकि यह कुछ व्यक्तियों का निस्वार्थ व्यक्तिगत किन्तु सामूहिक प्रयास है.....आशा है हम सब इससे जागे तो हैं....और अब औरों को जगाने का भी काम करेंगे.....यूँ तो केजरीवाल जैसी  जान  दाँव   पर लगाकर मांग पर टिके रहने वाली उस उच्च श्रेणी की समाजसेविका तो मैं कदापि  नही हूँ और न ही अन्ना जी जैसे दिल दिया है जान भी देंगे जैसा उदार और शेर दिल वाला फैसला लेने ले पाने में सक्षम हूँ मैं.....पर अपना हिस्सा तो निकालकर थाली में रख ही सकती हूँ.....विश्वास है....छप्पन भोग से थाल शीघ्र ही सुसज्जित हो जायेगा....और राष्ट्र -देव को प्रसाद अर्पित हो पायेगा ....!! 
                                   हम न सोचें हमें क्या मिला है ,
                                   हम ये सोचे किया क्या है अर्पण!! :)
 बहुत  हो गये...सवाल -जवाब कि कौन करेगा? क्या होगा? कैसे होगा? कुछ होगा या नही ? अब अपनी आत्मा से सवाल करने का वक़्त है ,विवेक के साक्षात्कार  वक़्त है.....मैंने क्या करना है? मुझे कैसा भारत चाहिए....और मैं इसके लिए क्या कर सकता/सकती हूँ....!! २०१४ के आम चुनावों में आशा है 'आम ' जनता जिनमे हम युवा अधिक हैं अपनी कल्पनानुसार ,स्वप्नों के भारत की नीव रखेंगे ....



मित्रों ....रबिन्द्रनाथ   टेगोर जी की ये पंक्तियाँ....मुझे हमेशा एक खूबसूरत भारत माता की छवि  दिखाती   हैं ..तो उन्हें मैं यहाँ उद्धृत करने नहीं रोक पाई....(संयोगवश पृष्ठभूमि में दिलजले फिल्म का' मेरा मुल्क मेरा देश.....की 'इस वतन को स्वर्ग हम बनायेंगे.' वाली  पंक्तियाँ  चल रहा है....:)
                             
                                         जहाँ उड़ता फिरे मन बेख़ौफ़
                                    और सर हो शान से उठा हुआ 
                                    जहाँ इल्म हो सबके लिये बेरोक 
                                    बिना शर्त रखा हुआ 
                                    जहाँ घर की चौखट से छोटी सरहदों में ना

                                   बंटा हो जहान

                                   जहां सच से सराबोर हो हर बयान
                                   जहां बाजुएं बिना थके लगी  रहें कुछ
                                   मुक्कमल तलाशें  
                                   जहां सही सोच को धुंधला ना पाएं उदास 
                                   मुर्दा रवायतें
                                  जहां दिलो-दिमाग तलाशे नया खयाल
                                  और उन्हें अंजाम दे
                                  ऐसी आजादी की जन्नत में आए खुदा
                                     मेरे वतन की हो नई सुबह !

                  
 अरे मैं आपको स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाएं तो देना ही भूल गयी...आशा है हम अगली सालगिरह पर कुछ और आज़ाद हो पाएं!! ६५ वें जश्न -ए- आजादी की शुभकामनाएं......!! :)

1 टिप्पणी:

  1. भारत की दशा और दिशा पर प्रकाश डालते हुए एक उम्दा लेख |

    मेरा ब्लॉग आपके इंतजार में,समय मिलें तो बस एक झलक-"मन के कोने से..."
    आभार..|

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