बुधवार, 29 अगस्त 2012

कवि तो ख़ुद एक कविता है


कवि तो ख़ुद एक कविता है



उसमें अनंत गहराई है,
है व्याकुलतातन्हाई है,
ढूंढ सको तो ढूंढ लो ,
एक ‘सोताउसमें कहीं बहता है-
कवि तो ख़ुद एक कविता है ।
दुनिया से बेगाना है,
दुनियादारी से अनजाना है,
अव्यक्तउलझे भावों को,
वो कागज़ पर लिख देता है-
कवि तो ख़ुद एक कविता है ।
शब्दों की भी सीमायें हैं,
कविता में कुछ अंश ही आयें हैं,
सागर से निकली इन बूंदों में भी,
कितना कुछ वो कहता है ,
कवि तो ख़ुद एक कविता है ।
उन शब्दों को हम ना ताकें,
गर उस हलचल को पहचान सके ।
क्या कहना आख़िर वो चाहता है,
उन अर्थों को हम जान सकें,
बेचैनीउमंग नीरवता को भी,
वो लफ्जों में कह देता है ।
कवि तो ख़ुद एक कविता है ।
कविता तो एक माध्यम है,
आख़िर तो कवि को पढ़ना है ।
कलम की इस सीढ़ी से,
उसके ह्रदय तक चढ़ना है ।
वहाँ पहुंचोगे तो पाओगे
एक कलकल करती सरिता है ।
कवि तो ख़ुद एक कविता है ।
ऋषभ जैन

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