शुक्रवार, 31 अगस्त 2012

इसी झमाझम बारिश में .....

इसी झमाझम बारिश में .....
उन ऊँचे मकानों का रईश वाशिंदा
कागज़ी नाव तैरा खिलखिलाता रहा
कहाँ छप्पर में रहने वाला  छोटू
फटी से रजाई में छटपटाता रहा
इसी झमाझम बारिश में
लाट साहब बालकनी में बैठ
गरम चाय कि चुस्की लेते रहे
हरिया पर छपरिया की ओट से
बादल कहर बन बरसते रहे
इसी झमाझम बारिश में
जो बाबु तो चरपहिये में थे ..
शीशे गिरा तेज़ी से  निकल गए
और जो गरीब साईकल से थे
बीच रश्ते उनके पैडल गिर गए
इसी झमाझम बारिश में ||
प्रेमी प्रेमिका इस मौसम में 
हरदम मशगुल बातियाते रहे
और मुझसे शायर अपनी
कल्पित ग़ज़ल दुन्दते रहे
इसी झमाझम बारिश में ||

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