सुबह हुई और एक कली मुस्काई
खूबसूरती पर नाज़ कर इतराई
सूरज किरण से खुद को नहलाई
लेकिन काटें को देखकर झुंझलाई
शूल पिछली रात से जगा बैठा था
प्रेम विरह डाह से जकड़ा बैठा था
मदरते हुए कहीं से भवर आ बैठा
बिन संकोच पुष्प हर्दय पर जा बैठा
कली की उसको मौन सहमति थी
विरह रत शूल की यह और दुर्गति थी
खूबसूरती पर नाज़ कर इतराई
सूरज किरण से खुद को नहलाई
लेकिन काटें को देखकर झुंझलाई
शूल पिछली रात से जगा बैठा था
प्रेम विरह डाह से जकड़ा बैठा था
मदरते हुए कहीं से भवर आ बैठा
बिन संकोच पुष्प हर्दय पर जा बैठा
कली की उसको मौन सहमति थी
विरह रत शूल की यह और दुर्गति थी
इस दर्द ए दिल को वह सह न पाया
और जीते जी कफ़न को अपनाया
हरा भरा शूल इस दर्द से मर गया
और जाते जाते एक सबक दे गया
"जो रशिक है सजीव हो उसको सब माफ़ है
और उस जैसे निर्जीव को प्रेम एक शाप है "
और जीते जी कफ़न को अपनाया
हरा भरा शूल इस दर्द से मर गया
और जाते जाते एक सबक दे गया
"जो रशिक है सजीव हो उसको सब माफ़ है
और उस जैसे निर्जीव को प्रेम एक शाप है "
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