बुधवार, 1 अगस्त 2012

रंग है स्त्री....

                                                        रंग है स्त्री....                    

स्त्री रचकर विधाता ने जैसे रंग रचा हो|सारी ज़िन्दगी रंग ढून्ढ-ढूँढकर वो रंगों को अपनी ज़िन्दगी में शामिल करती रहती है....जाने कबसे जानती है वो मेहँदी के पौधों को...पत्तियां तोड़ लायी और रचा लिया हाथों पर....
      चेहरे के गुलाल ने शायद यह बताया होगा कि यह रंग माथे पर खूबसूरत लगेगा |सो सजा लिया माथे पर...दामन रंग लिए....स्त्री को जग ने पाया तो पत्थरों ने भी खजाने खोल दिए.....रत्नों के.....सागर ने मोती लुटाये....और उसके अश्कों की शक्ल में ढलकर साथ हो लिए...जिसे मानव महत्वहीन मानता रहा....उन कंकरों ने स्त्री को घुंघरुओं का संगीत दे दिया...!
 बसंत हो या फाग ,सरसों हो या टेसू,लगता है जैसे प्रकृति भी उसीको लुभाने के लिए फलती फूलती रहती है....|
       रंग खिलते भी हैं उसी पर....तुलसी,बरगद ,पीपट ,नीम का महात्म्य अजाना ही रह जाता ,जाने कब उसने गेंदे के बीच आम की पत्तियां पिरोकर बंदनवार बना ली ,कब द्वार पर रंगोली सजा ली ,दीप के कदमों पर फूल रखकर रोशनी और सुगंध को मिला लिया ,वह तो घड़े भी सजा लेती है,गोया कि पानी ने भी अपनी बेरंगी छोड़ने की गुजारिश उसीसे की हो!गमले का रूप बदल देती है ,जैसे कि प्रकृति के रंग काफी न हो....माटी से झाँकने के लिए....
       उसके  हाथों में दे रखी है विधाता ने सृजन की डोर ! बुनती रहती है उससे ज़िन्दगी के ताने-बाने....ताउम्र  अपनों और परायों के जीवन में रंग सजाने की कोशिश में लगी  रहती है ....स्त्री...उसी की बनायीं रंगीन सृष्टि को ,उसके अस्तित्व के उत्सव के दिन को होली के दिन घोलकर मनाएं हम....इस मेल के रंग भी अनूठे चुने हैं हमने.....होली के रंगों सा चमकीला रहे स्त्री जीवन यही दुआ है.....जिस प्रकार वह दूसरों के जीवन में खुशियों के मनमोहक रंग भरती

है ....उम्मीद है की उसकी ज़िन्दगी जो कहीं बेरंग हो रही है .....फिर से...उसे हम खूबसूरती के साथ....उसके सपनों को हकीकत में बदलकर रंगमयी कर देंगे.....:):) होली और अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस की शुभकामनाओं के साथ.....:)
       

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