[तुझे भूलने के लिए किताबों में डूबा, किताबों को भूल गया, तेरी यादों में झूल गया,
कल रात पुस्तकालय में लिखी ग़ज़ल, वाणी के इस नूतन पृष्ठ पर मेरी पहली पोस्ट]
जो बयान जुबां से हो जाए, वो आशिकी क्या है?
जो होश में कट जाए, वो ज़िन्दगी क्या है?
देखा है नूर तेरा, हर ज़र्रे में कायम,
जो नज़र मंदिर में ही आए, वो बंदगी क्या है?
कसम याद में मेरी, आँसू ना बहाना,
जो अश्कों में बह जाए, वो बेबसी क्या है?
ना जुबां पर शिकायत, ना चेहरे पे शिकवा,
जो पराये समझ जाए, वो बेरुखी क्या है?
हर मोड़ पर, इस शहर में, आशिक बहुत तेरे,
जिसे तारों ने ना घेरा, वो चांदनी क्या है?
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें