मंगलवार, 18 सितंबर 2012

बूँद...


कुछ चीजें होती है, जिनका अनजाने में ही इंतज़ार किया करते है,
कोई खामोशी से तो कोई ख़ुशी से, अपना इज़हार किया करते है…कुदरत की इस कृति की बड़ी अजीबोगरीब दास्ताँ है,इसे समझ पाना कभी मुश्किल, तो कभी बहुत आसान है….

ये बहरूपिये की तरह है, जो किसी को पहचान में नहीं आती है…
धरती की प्यास बुझाने के लिए, बरस पड़ती है आसमान से,
लहलहाते खेतों के लिए, बन के आती है सोमरस के रूप में…
सूरज की किरणों के साथ खेल होली, ये इन्द्रधनुष बना देती है…

बारिश में पेडों के पत्तों पर, ये मोती बनकर बिखर जाती है,
फूल के अंगों पर सजकर, ये दुल्हन उसे बना देती है…
गम में डूबे हुए को अपना सहारा देकर, अनगिनत देवदास बनाये है…
कभी दुःख में शामिल होकर, आँख से आंसू बनकर निकल पड़ती है ,

तब आसान नहीं होता रोक पाना इसे, जब आँखे ज्वालामुखी बन जाती है…
लगता है जैसे अपनी मेहनत से जीत कर ज़ंग, हम बन गए हो बादशाह जगत के…
इतना कुछ होने पर भी हमेशा खोई रहती है किसी गुमनामी के अँधेरे में,
जैसे ये मिटा देती है अपना वजूद, डूब कर समुन्दर की गहराइयों में…


जैसे “पानी की बूँद”, कहने को तो सिर्फ एक मामूली बूँद होती है,
समूचे गगन में हो संग हवाओं के, ये ठुमकती रहती है,
शराब की बोतल में लुढ़ककर, ना जाने कितने मयखाने सजाये है,
ये उभरती है हीरे की तरह चमकती हुई, जब माथे पर पसीना बन के ,
- कन्हैया लाल

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