रविवार, 9 सितंबर 2012

गर मिलने का मन हो तुम्हारा



गर मिलने का मन हो तुम्हारा

गर मिलने का मन हो तुम्हारा , तो कुछ 'वक्त' भी साथ ले आना….
यूँ हड़बड़ी में मुलाकात 'अधूरी' रह जाती है !

होती तो है ‘गुफ्तगू’, पर जो कहनी होती है बात ‘खास’ …… 'वो बात' अधूरी रह जाती है !
यूँ हड़बड़ी में मुलाकात अधूरी रह जाती है!!

होती तो हैं बरसातें हर रोज यहाँ , पर भिगो दे जो प्यासे मन को ….. 'वो बरसात' अधूरी रह जाती है !
यूँ हड़बड़ी में मुलाकात अधूरी रह जाती है!!

आती हैं रातें खुद में डुबाने को , पर जिस रात न आये तू ख्वाबों में...… मेरी तो 'वो हर रात' अधूरी रह जाती है !
यूँ हड़बड़ी में मुलाकात अधूरी रह जाती है!!

मज़ा तो आता है तेरे संग, उन संजीदा बातों में भी, पर मन में होती जो खुराफात....... 'वो खुराफात' अधूरी रह जाती है !
यूँ हड़बड़ी में……. मुलाकात...  अधूरी रह जाती है!


……………. शक्ति शर्मा

2 टिप्‍पणियां: