गुरुवार, 6 सितंबर 2012

चुपचाप चला जाता है



कभी वो एक उत्सव हुआ करता था,
भागते बच्चों की आवाजों पर सवार|
दुनिया बाँध लाता था झोले में,
घंटी झनझनाती थी दिल के तार|

पुरानी साइकल से सरहदों तक
चलता था जिंदगियां जोड़ते हुए|
ना जाने कैसे संभाल लाता था
छोटे कागजों पर समंदर तोलते हुए|

अब खत कम लिखते है,
अब कम ही आता है डाकिया,
राह जिसकी देखा करते थे,
अब चुपचाप चला जाता है डाकिया,

भावनाएं अब तेज बहती है ...
लोग ई-मेल लिखा करते है ...








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