बुधवार, 5 सितंबर 2012

प्रिय राष्ट्र भाषा

एक मायूसी छाती है , जब तेरी याद आती है 
भावनायें उठती है मन में, और यह रचना बनकर उतरती है"

तेरे साथ, जिन्दगी के सफ़र की शुरूआत करता हूँ 
इस जग को समझने का, एक सुन्दर एहसास लेता हूँ 
खो गए वो पल, उन छोटी- छोटी खुशियों के 
ना जाने क्यों, उन्हें अब भी याद करता हूँ

नहीं चाहता तुझसे जुदा होना, ये वक्त इजाजत नहीं देता 
तेरे पास जाती उस मझधार में, मुझको बहने नहीं देता 
चाहता हूँ तुझमे मिलना, बीच में बड़ी खाई है 
वक़्त के इस खेल में, तुझसे ये मेरी जुदाई है 

जिन्दगी के इस शोर में, एक सूनापन है 
तुझसे बिछड़ने का ये कैसा एहसास है 
वक़्त कहता है भुला दू तुझे........... 
पर.! दिल कहता है, अब भी तू मेरे पास है...!!

-गोविन्द भेडोलिया (govindkota@gmail.com)

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