बुधवार, 5 सितंबर 2012




आँखों में पलते सपनों 
में रोज़ भरती हूँ रंग 
कुछ हलके, कुछ गहरे 
कभी सादे, कभी सुनहरे 
सपनों का ये झुरमुट 
पलकों तले तैरता है 
यूँ , जैसे हो कोई  इन्द्रधनुष 

सुनती हूँ मैं नगमे अक्सर 
कोई मीठा, कोई मद्धम 
कुछ में छलके ख़ुशी 
कोई बयान करे गम 
धुनों का ये संगम 
है जैसे बूंदों संग 
बरसता कोई इन्द्रधनुष 

एक किस्सा लिख रही हूँ
पल पल जीकर ये ज़िन्दगी 
झेली है मैंने तपिश भी 
चखा है छाँव को भी 
ये मेरा जीवन भी तो 
है जैसे आसमान के सीने 
पे बिखरता कोई इन्द्रधनुष 

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