बुधवार, 5 सितंबर 2012

Guru..

कभी सोचा है
गुरु की तपड़
छात्र को पदाने
की उसकी ललक
उसकी आखों में

इस ख़ुशी की झलक
कभी वो माँ सा है
कभी है दोस्त वह
कभी है भाई सा
तो कभी जेष्ठः है
माँ डांटती है
अवगुणों से बचाने को
गुरु डांटता है
जीवन सवारने को
है कभी वह उस माझी सा
जिसने तेरी नाव को बचाया होगा
कभी है वह उस माली सा
जिसने पुष्पों को सजाया होगा
इश्वर से बड़ा है वो
क्यूंकि तेरी तकदीर को बनाया है
अगर तू एक फूल है तो
तुझे खुशबु से सजाया है .
तुम थे जब अँधेरे में
तब उसने ही दिया जलाया होगा
कभी कृष्ण सा सारथी बन
अर्जुनों को सम्हाला होगा
है गुरु वह ही
जिसने न किया कभी भेदभाव
उसने पांडवों को पदाया
तो पदाया था कौरवों को भी
है सभी सामान उसके समछ
जैसे चछु हो दो आँख के
उसने सिखाया अनुशाशन
तो है सिखाया अंतर्ज्ञान भी
है दिखाई ज्ञान की बाती इसने विश्व को
है दिखया मार्ग इसने पथभ्रष्ट संसार को
लो चलो हम आज इसको अपना
प्यार और सम्मान दे
है नहीं कुछ और तो
अपने स्नेह का उपहार दें .||

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