बुधवार, 5 सितंबर 2012

गुरु ,शिक्षा और भविष्य !

          जन्म के बाद  से ही इंसानों की सीखने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है......माँ -पापा  की घरेलू पाठशाला में हम बोलना ,चलना, खाना सीखते हैं....वैसे तो  देखा जाए तो.....गर्भ में भ्रूण में प्राण के प्रवेश के साथ ही.....उसके सीखने की प्रक्रिया आरम्भ हो जाती है......अभिमन्यु के चक्रव्यूह बेधने के ज्ञान  की घटना तो पता होगी आपको.....! पर......जैसे ही हम स्कूल में प्रवेश करते हैं.....वैसे ही....हमारे गुरु और शिक्षण ,शिक्षा का तरीका और माहौल भी बिलकुल बदल जाता है......कई बार जो बातें हमारे माता पिता हमें चाहकर भी समझा नही पाते......या हम उनकी बातों  पर  ध्यान नही देते....तब आता है शिक्षक....उनकी    फटकार का डर हो  या उनके समझाने का मीठा लहज़ा......बच्चा तुरंत उसे मान लेता है.......छोटी छोटी बातों से लेकर....पाठ्यक्रम का ज्ञान....वही शिक्षक.....कितनी सरलता और सुगमता के साथ करा देता है......पर उसी की एक गलती हमारे भविष्य को  धूमिल कर सकती है.....देखिये न.....कितना जोखिम भरा  और कितनी  महत्वपूर्ण ईकाई  है यह शिक्षक.....हम छात्र जो पूरी तरह सिर्फ उन्ही पर निर्भर होते हैं.....उनपर पूरा विश्वास भी करते हैं.....पर अगर वो ही  अपने पद की गरिमा के साथ खिलवाड़ करने लगें.....तो!  ये उस दीमक की भाँति होगा.....जो धीरे धीरे बच्चे जो भविष्य हैं उनके माध्यम से पूरे देश,समाज को  खा जाएगा......पूर्व भौतिकशास्त्र के व्याख्याता और वर्तमान में प्राचार्य पिता और  शिक्षिका माँ  की बेटी होने के कारण यह बात मैं भली भाँति.समझती हूँ.....मैं अक्सर मम्मी से पूछा करती हूँ.....अभीभी.....कि आप  इतना क्यूँ काम करती हो......क्यूँ भोजन के अवकाश में भी बच्चों की समस्याओं का समाधान करती रहती हो......लगातार......४-५ घंटे लेक्चर लेते रहना......क्यूँ? तो उनका जवाब होता है.....बेटा.....वो मुझपर इतना भरोसा करते हैं......मेरा फ़र्ज़ मुझे बेकार बैठने ही नही देता खाली वक़्त में भी.....!! पापा ! उनके तो पढ़ाने के और उनकी सलाह के जितने  छात्र मुरीद हैं.....मुझे आश्चर्यचकित कर देते हैं.....क्यूंकि वो कहते हैं न...घर की मुर्गी दाल बराबर! खैर मुझे गर्व है कि मैं इतने सच्चे और अच्छे शिक्षकों की संतान हूँ.....!! :):) मैं उस गर्व का अनुमान और  उन भावनाओं को शब्दों में नही संप्रेषित कर सकती जो मैंने हाल ही में आकांक्षा संस्था के बच्चों के साथ गुरु पूर्णिमा के अवसर पर  महसूस किया......जो सम्मान और संतुष्टि मेरे पढ़ाने से मुझे मिली......और उन्होंने जो मुझे उपहार और पुष्प गुच्छ  दिए.....और मुझसे जिद की कि मैं  रोज़ आऊँ जो मेरे लिए दुर्भाग्य  से कॉलेज शुरू होने के बाद संभव नही हो पाया.....सचमुच देश के कंगूरे रखने का मौका उन्हें मिला है......तो वे ख़ास भी हैं.....और......अहम भी!   पर क्या हर शिक्षक इस अहमियत को ,अपनी ज़िम्मेदारी और  फ़र्ज़ को समझता है......? चिंतन वहीँ आरंभ हो जाताहै...आज हम सुनते हैं.....कि शिक्षक खुद नक़ल करवाते हैं......या....रिश्वत लेकर उतीर्ण कर देते हैं......या.....मेरी प्राइवेट कोचिंग में आओ नही ..फेल कर दूंगा की धमकियाँ देते हैं और स्कूल में नही पढ़ाते ....या खुद ही  प्रश्न पत्र लीक कर देते हैं......तब  मन दुखी हो जाता है.....क्यूँकी अगर आज के नेता से लेकर.....हर इंसान में उसके चरित्र में कालापन है.......बेईमानी है.....भ्रष्टता है तो वो किसी शिक्षक या गुरु जिसमे माता पिता भी शामिल हैं.....की बेईमानी या नाकारी की ओर इशारा करता है......बताता है कि अगर आज उस फलां व्यक्ति के शिक्षक ने उसे इस बात की सही सीख दी होती तो आज ऐसा नही होता वह! मेरा अभिप्राय पानी की तरह सुस्पष्ट है.....कि आज की पीढ़ी के हर व्यक्ति के चरित्र के पीछे.....उसका गुरु छुपा होता है......!! अच्छे और सच्चे.....कर्तव्यनिष्ठ शिक्षकों को सम्मानित भी करते हैं हम......उनका ज़िक्र तो ज़रूर होगा......पर उनकी शिक्षा तब  सार्थक और गर्वोन्मत्त हो  जाती है  जब उनका छात्र सफलता के शिखर पर होता है.......!! हां सरकार को भी चाहिए कि वह उनके उनकी अहम भूमिका को देखते हुए उनकी आय तय करे.....और यथोचित सम्मान और महत्त्व दे ! और हम छात्रों को भी चाहिए कि शिक्षक या प्रोफ्रेसर चाहे कैसे भी हों.... ज्ञान,उम्र और ओहदे में हमसे कहीं ज्यादा वरिष्ठ हैं......माना कि कभी कभी कोई प्रोफेसर बिलकुल नही अच्छा लगता......या उसके पढ़ने का तरीका बिलकुल गले नही उतरता.......वो अलग समस्या है......जो उनसे व्यक्तिगत रूप से मिलकर या.. स्वाध्याय से हल की जा सकती है......पर.....कभी.....भी परोक्ष रूप में भी.....उनका अपमान नहीं करना चाहिए.......!
             मेरी ज़िन्दगी में अभी तक आये सभी शिक्षकों को सादर अभिवादन और धन्यवाद.....क्यूँकी इतना तो तय है कि अगर कोई शिक्षक नही भी पसंद था तो भी उसकी कोई न कोई अच्छाई हमने सीखी ही होगी.....:) इसलिए......आज मैं ,आप और हम सब जो भी कुछ हैं......अपने गुरुओं की वजह से  हैं.....!  सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मदिवस को शिक्षक दिवस के रूप में मनाये जाने की यह परंपरा रही है....ताकि एक दिन ही सही हम जिस प्रकार माता पिता का क़र्ज़ नही अदा कर सकते वैसे ही गुरु का भी.....! तो हम उनको  याद करें.....और आगे बढें.....!! :)

        

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