एक छोटी बेरंगी छत,
बारिश में टप - टप करती|
एक अदद टूटी चप्पल,
पानी में छप छप करती|
एक पुरानी नेकर जो थी,
अरसे से बिन धूलि हुई|
थाम हाथ में एक कापी,
दूजे में ब्रेड है जली हुई|
बिखरे बाल, उनींदी आँखें,
एक छाते में कई छुपे हुए|
बड़ी देर से आती बस के,
कोने कोने में भरे हुए|
कोई फिकर ना मस्त सभी,
है जिंदगी अपनी सबसे सही ...
बिन जिए जिसे कोई ना समझे,
है IIT मेरे यार यही ||
एक छाते में कई छुपे हुए|
बड़ी देर से आती बस के,
कोने कोने में भरे हुए|
कोई फिकर ना मस्त सभी,
है जिंदगी अपनी सबसे सही ...
बिन जिए जिसे कोई ना समझे,
है IIT मेरे यार यही ||
Photo Credit ; Akvil Sakhare
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें