रविवार, 14 अक्तूबर 2012

तरुणि-सौन्दर्य

खुले निहारे,बंद निहारे,यहाँ निहारे,वहाँ निहारे,बस मे नाही नैन हमारे!
तुम-सी मोहनी मूरत रच के , विधि ने अपने हाथ संवारे !
केश ललित काले घुंघराले, पवन-वेग मे मतवाले !
सागर की मौजो के जैसे, लेत लहरिया भर किलकारे!
नूर भरा निष्कलंक-स्वच्छ-जल सम, नैनो के 'मान-सरोवर' मे!
रति-पनिहारिन जल भरती नित , निज यौवन की गागर मे!
कोमल कपोल मुख कमाल की पांखें , भरी प्रेम संदेशो से!
नित प्रभात मे कली चटकती,जिसकी मुस्कान के आदेशो से!
यूँ तो आँखो मे अगणित बाते,पर लब पर आता जब जीवन का सुर!
कभी चपल चिड़ियो का कलरव , कभी कोकला-कूक मधुर !
जाने-अनजाने हिरनी ने , चाल तुम्हारी पाई है!
सहज नही है रत्न जवानी,यहाँ बहुत महेंगाई है!
सम्मोहन का जादू डाला , मुझ बसंत के दीवाने पर!
तितली-सी उड़ चली हवा मे,निष्फिकर चलाती अपने पर!
सादगी के सुंदर तटबंधो से , यौवन नदी उफान भरे!
मिलन खड़ा उस पार नदी के,नित हँसी करे,नित हँसी करे!
'परमानंद' काहे बौराना , कौन तुम्हारी फिकर करे!
सुंदरता के मोल बड़े है,दिल चाह करे या आह भरे!
                                            


                                                   -परमानन्द

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