शनिवार, 6 अक्तूबर 2012

गज़ल

तेरी गली के मोड पर,
खुद को बेज़ार पाता हूँ,
जिल्लतें रोज़ मिलती है ... फिर भी हर बार आता हूँ, 

जीते जी जिन्हें कभी, 
इक खुशी ना दे सका,
फूल चढाने अब उनकी ... मजार जाता हूँ|

हारी ना जंग कोई, 
सीधे सामना सबका,
तेरी नज़रों से नहीं लड़ता ... उनसे हार जाता हूँ|

'मैडम' के आदेश बिना,
जुबां तक नहीं चलती,
'जनता' मेरी लाचारी देखो ... सरकार चलाता हूँ|

सम्मान-ट्रोफी-तमगों से,
घर पटा पड़ा लेकिन,
भूखा अक्सर सोता हूँ ... सितार बजाता हूँ|

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