ये ज़िंदा लाशों का शहर है।
ठहरी हुई ज़िन्दगी थामकर
लोग रोज़ भागते है,
किस और भागते है, क्या खबर ?
मंजिल दूर ही रहती है ...
खुद गुमशुदा रास्ता दिखाते है,
अंतहीन इस भूल-भुलैया में
अंधेरों में रोशनी तलाशते है ...
ये ज़िंदा लाशों का शहर है।
घड़ियाँ यहाँ मनमौजी है,
कभी दौडती बेसुध, कभी थम सी जाती है ..
फुर्सत में आइना अजनबी लगता है,
न जाने कौन ?
सफ़ेद बाल, झुरियां थकी सी,
कल तो उसपार एक नौजवान रहता था।
आग जलती रहे अगली सुबह भी
इस कोशिश में,
रंगीन पानी में हर रात डुबाते है ..
ये ज़िंदा लाशों का शहर है।
यहाँ शोर में खामोशी है,
पर सन्नाटों का शोर है ...
आँख खोल कर सोते है,
जागते बंद आँखों से ...
हकीकत बेच कर यहाँ
सपने खरीदते है लोग ...
उगती शामों में परिंदे,
घर नहीं लौटते,
ना ही माँ इंतज़ार करती है ..
चूल्हे की आग ठंडी सी है।
ये ज़िंदा लाशों का शहर है।
लो इस अजीब शहर में,
एक सुबह फिर 'डूब' गई ।
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