रविवार, 4 नवंबर 2012

"वाणी में अमृत भर दे माँ "

जीवन में इतना कर दे माँ ,वाणी में अमृत भर दे माँ !

बीज डाले थे तूने जो रस के,उन बीजों को अंकुर कर दे माँ !

वाणी में अमृत भर दे माँ !

नए पुष्पों की बगिया सुन्दर ,वाणी होवे ज्ञान समुंदर !

हिन्द गुलिस्तां गुल खिल जाये ,इत्र सुगन्धित सात समुंदर !

नए फागुन का नया सवेरा ,भारतवर्ष में कर दे माँ !

वाणी में अमृत भर दे माँ !



माँ !बचपन को याद दिला दे,असली बचपन क्या है !

बाल - सुलभ सब खेल कहाँ गए ,क्यों नित सकुचाती त्रिज्या है ?
वो जल बरसा दे जिसमे ,कागज की किस्ती चल दे माँ !

वाणी में अमृत भर दे माँ !

क्यों है इतना शोर हो रहा है ,नहीं सुनाई कुछ देता !

नन्ही बेटी की मृदु वाणी को ,कुचल ज़माना क्यों देता ?

उस प्यारे -से भोलेपन का ,अब उजियारा कर दे माँ !

वाणी में अमृत भर दे माँ !

चंचल पंछी उड़ते जाना ,आज खबर फैलाना है !

बिन करुणा रोती करुणा को ,करुणा से सहलाना है !

वीणा की इक तान छेड़ दे ,सुर का झरना झर दे माँ !

वाणी में अमृत भर दे माँ !

                                 -परमानंद 

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