शनिवार, 1 दिसंबर 2012

दुखांत ये नहीं होता ....


दुखांत ये नहीं होता .....

दुखांत यह नहीं होता कि रात की कटोरी को कोई जिन्दगी के शहद से भर न सके, और वास्तविकता के होंठ कभी उस शहद को चख ना सकें ....दुखांत यह होता है कि जब रात की कटोरी पर से चंद्रमाँ की कलई उतर जाये और उस कटोरी में पड़ी कल्पनाये कसैली हो जाये.

दुखांत ये नहीं होता की आपकी किस्मत से आपके साजन का नाम-पता ना पढ़ा जाये और आपकी उम्र की चिट्ठी सदा रुलती रहे. दुखांत यह होता है कि आप अपने प्रिये को अपनी उम्र कि सारी चिट्ठी लिख लें और आपके पास से आपके प्रिये का नाम पता खो जाये.

दुखांत यह नहीं होता कि जिन्दगी की लम्बी डगर पर समाज के बंधन अपने कांटे बिखेरते रहे..और आपके पैरो में से सारी उम्र लहू बहता रहे. दुखांत यह होता है कि आप लहू लुहान पैरो से एक ऐसी जगह पर खड़े हो जाये जिसके आगे कोई रास्ता आपको बुलावा न दे.

दुखांत यह नहीं होता कि आप अपने इश्क के ठिठुरते शरीर के लिए सारी उम्र गीतों के पैरहन सीते रहें. दुखांत यह होता है कि इन पैरहनो को सीने के लिए आपके विचारो का धागा चूक जाये और आपकी सुई (कलम) का छेद टूट जाये. 
                              - अमृता प्रीतम  की आत्मकथा  "रसीदी टिकट" से  

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