मंगलवार, 27 नवंबर 2012

गरम चाय की कुल्हड़ और एक सर्द शाम

गरम चाय की कुल्हड़  और  एक सर्द शाम







कुल्हड़ ....
शब्द जितना है अल्हड ...

सिर्फ शब्द नहीं, मानव हाथों और मिट्टी का जोड़ है, अगढ़......

समय के अंधड आने से पहले .......

जब शाम व्यस्त के बजाय सर्द हुआ करती थी ......
चौराहे की किनारे एक छोटी सी दुकान....
और गरम चाय एक कुल्हड़ में .......
मिट्टी नुमा खुशबू उठती थी .....
चाय के रस में सराबोर होकर .......
तिलिस्म सिर्फ सर्द और चाय में ही नहीं कुल्हड़ में भी था ......
अंतिम घूंट तक चाय के ताप को बस यूँ बनाए रखना ........
या फिर इस ढंग से कम करना .......
मानो जिंदगी निकल जाये और जवां होने का भ्रम भी बना रहे ......
और फिर धरा पे चटक जाये बेखबर .........
छोटे - छोटे टुकड़ों में बिखर .....
अस्तित्व के मोह को छोड़कर ......
चयन सृष्टि के चक्र का सफर ..............
गरम चाय की कुल्हड़ ,..........
सर्द शाम में .........
अहसास कराती थी ,..........
जीवन बस यूँ ही है ..........
निरन्तर ..................


                                                 - नेपथ्य निशांत 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें