हम हैं आज खंडित, और विभाजित
हर एक है सम्मिलित, वर्ग अनगिनत
धर्म में, कर्म में
पद में, कद में
देश में, वेश में
जाति में, ख्याति में
वर्ण में, लक्षण में
भूखंड में, घमंड में
अर्थ में, सामर्थ में
दल में, जल में
जाने कितने जन में, जाने कितने गन में
सुन्दर है विविधता, और ये विभिन्नता
हो सम आदर अगर, मानवता जाये संवर
क्यों नहीं हो समाकलन, और जियें हम मानव बन
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