एक तलइया मोरे गाँव।
नाँव न जानै जाति न पूछै,
गगरी एक न फेरति छूछै,
ऊँच नीच बिन चीन्हे जाने,
बस धोवै धुरियावै पाँव।
… … एक तलइया मोरे गाँव।
बकरी, सेर, सुअर औ’ गइया,
पिये बाज पीवइ गौरइया,
सबहीं का यक घाट पियावै,
हर पियासि काँ देवै छाँव।
… … एक तलइया मोरे गाँव।
तुम्हरे मत निकिस्ट यह तलिया,
यह हमकाँ समान लखि सुखिया,
तुम तौ धरम जाति के ढोंगी,
फूट बोइ फिर साधौ दाँव।
… … एक तलइया मोरे गाँव।
~हरिश्चंद्र पांडेय ‘सरल’
post: http://awadh.org/2011/08/29/
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