सोमवार, 21 जनवरी 2013

जागृति : यात्रा यादों भरी (भाग दो)


 
पहले दिन हमें 22 समूहों में बांटा गया .हमारे समूह-f  के सदस्यों से और मेंटर से परिचय हुआ .सभी अलग अलग पृष्ठभूमि और संस्कृति से आये  -तो अब हम भी गर्व से कह सकते हैं कि हमारे ही जैसे उद्देश्यों वाले और कुछ करने की जिद लिए हुए लोग हमारे मित्रों का अब ये समूह सारे  विश्व में फैला है। 

दिन-दूसरा -क्रिसमस का दिन हमने रेल में ही बिताया .इससे पहले कुर्ला स्टेशन  पर ही क्रिसमस मनाया .मुझे यकीन है कि ऐसा अनोखा क्रिसमस किसी ने भी नहीं मनाया होगा-450 के बड़े परिवार के साथ!

मंज़र है कुछ निराला सा -भावनाएं अपने पूरे उफान पर हैं।सफ़र तो अभी शुरू हुआ था .हर एक पड़ाव ही मानों मंजिल नज़र आ रही हो। बाहर  खिड़की से झाँकने पर लगता है कि जब समंदर में गोते लगाने में उसकी गहराईओं में खोने में,लहरों के साथ अठखेलियाँ करने में इतना मज़ा आ रहा हो तो किनारे तक पहुँचने की जल्दी किसे है!!  अपने सुविधापूर्ण जीवन से बाहर निकलकर उद्यम और उद्यमिता के ज़रिये  नवीन भारत  का एक नया ढांचा तैयार करने का अद्भुत सफ़र है यह।( मुझे यहाँ एक और बात शशांक सर के उद्बोधन की यहाँ याद आ रही है कि उद्यमिता एक बड़ा ही विस्तृत क्षेत्र है-आप एक उद्यमी नौकरशाह भी हो सकते हो -बस कुछ  नया करने के लिए ,सीखने के लिए अपने कानों और मस्तिष्क के दरवाज़े और खिडकियों को नए विचारों के लिए खोल दें।अपने उद्यमी हाथों को भी बख्श दें .-क्यूंकि

                       जब मंजिल बिलकुल उजले पानी की तरह साफ़ नज़र आये
                      और उसे पाने की चाहत और पागलपन सर पर सवार हो
                      तब ही हासिल होता है इस दुनिया में कुछ ....

और ये बात तो हर एक रोल मॉडल से मिलकर और भी साफ़ होती जा रही थी। कि कुछ करने का जूनून,आत्मविश्वास हो तो आर्थिक समस्याएं और अन्य बाक़ी मुद्दे भी धीरे धीरे हल हो जायेंगे।


आज रेल में पहला दिन था तो -ख़ास रूप से बनाये गये बाथरूम्स ,कम्पार्टमेंट जो इस रेल के बड़े से चलित घर
का हमारा कमरा था जिसे हमें और 4-5 लोगों के साथ बांटना था जोकि मुझे लगता था बेहद प्यारा था -से परिचय हुआ।
नेहा,नेहा,दिव्या,अमृता ,पल्लवी,एलिज़ाबेथ,संजना  मेरे सह -कम्पार्टमेंट यात्री थे।अगले कम्पार्टमेंट में भी हमारे ही समूह के लोग थे .और वहीँ हमारी मेंटर भी थी तो औपचारिक और अनौपचारिक चर्चाएं वहीँ हुआ करती थीं।

मैंने सपने में भी नही सोचा था कि  चूंकि मैं थोड़ी अंतर्मुखी किस्म की हूँ तो इतनी जल्दी दोस्ती कर लुंगी .
पर मुझे याद है कि मैं बीमार हो गयी थी , कोई मेरे सर पर बाम लगा रहा था- कोई दवाई दे रहा था तो कोई मेरे लिए खिचड़ी का इंतजाम कर रहा था। इतना प्यार,केयर और सहयोग सालों की गहरी दोस्ती में ही देखने को मिलता है पर यात्रा की बात ही निराली थी!! :) :) मुझे बड़ा भावुक सा महसूस हो रहा है।

                                           ---------------- स्पर्श चौधरी 

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