रविवार, 13 जनवरी 2013

जागृति : यात्रा यादों भरी (भाग एक )

एक यादगार दिन मेरे जीवन का -उर्जा और जोश से लबरेज ,परिवर्तन की लहर का एक हिस्सा बनने के उत्सुक,जुनूनी हम 450 युवा जो देश भर के 24 राज्यों के साथ साथ 13 देशों के 27 अंतर्राष्ट्रीय यात्री हैं टाटा सामाजिक विकास संस्थान ,चेम्बूर में लॉन्चिंग समारोह में -भारतीय संस्कृति की खूबसूरत छटाओं का अवलोकन .जागृति परिवार की-कार्य यात्रा ,उद्देश्य ,परिवार के सदस्यों से परिचय ,उनका परिवार से जुड़ाव ,सब को जानना ;वातानुकूलित कक्ष में उंघते लोगों को (ये तो हम हमेशा करते ही हैं पुनः एनर्जी का रिफिल करने का काम किया सुन्दर और भावपूर्ण जागृति गीत ने जिसे प्रसून जोशी ने कलमबद्ध और बाबुल सुप्रियो ने लयबद्ध ,आदेश श्रीवास्तव ने संगीत निर्देशन किया है ....ये इन दिनों मेरे अन्दर ज़ज्ब हो गया है ....जब भी गुनगुनाती हूँ ,रोंगटे से खड़े हो जाते हैं और यादें ताज़ा हो जाती हैं -                                                                                    

http://youtu.be/2xYJsMtMns8

आई .आई .टी .दिल्ली के भूतपूर्व छात्र शशांक मणि त्रिपाठी की इस नयी सोच की शुरुआत हुई थी 1997 में आज़ादी के 50 सालों के जश्न पर 'आज़ाद भारत की रेल यात्रा ' से जो बाद में 2007 में 'उद्यम के ज़रिये भारत निर्माण ' पर आधारित हो गयी।वन्दे मातरम-इस धरती को सुजलाम सुफलाम बनाने के लिए हम निकले हैं सच्चे भारत की यात्रा पर या आत्म अन्वेषण की यात्रा पर -गाँधी के दांडी मार्च से प्रेरित होकर उन्ही के पदचिन्हों पर चलकर ही 'भारत ' की खोज के लिए शुरुआत हुई थी इस यात्रा की .

इसके बाद हम मिले अपने प्रथम रोल मॉडल से -डब्बावाला के प्रमुख से -



घर से दूर रहने वालों से अच्छा कौन घर के बने खाने की महक की महत्ता समझ सकता है ! मुंबई एक महानगर -हर वक़्त भाग दौड़ में लगा रहने वाला -इंसान को अपने खाने की भी फुर्सत नही ...!
ऐसे में कोई तो है यहाँ जिसे उन तमाम लोगों के भोजन के प्रबंध की चिंता है ...डब्बावाला ! जिससे तकरीबन 2 लाख लोग रोज़ लाभान्वित होते हैं .(2.5 मिलियन -मैन्युअल ट्रांजिट है )-आज तक कोई गलती नही हुई ...या बोले तो त्रुटि की दर 1 इन 16 मिलियन है।
इस तकनीकी ज़माने में बिना किसी तकनीक के सहारे के रोजाना समय पर डब्बे ले जाना और वापस लाना आसन काम नही है - ऐसा प्रबंधन वो भी बिना किसी एम् .बी . ए के ही नही सभी सदस्य अशिक्षित या
अतिअल्प शिक्षित हैं तब ये कर रहे हैं। 114 साल पुराना ये ट्रस्ट लगातार काम करता रहता है -इसमें कोई सेवानिवृत्ति की उम्र नही है .हर एक सदस्य को 40 उपभोक्ताओं के लिए डब्बे लाना लेजाना होता है। लोकल ट्रेन पर ,साइकल्स ,हाथ ठेला ,पर हाथों में 60-65 किलो के टिफ़िन बास्केट्स लिए सर पर सफ़ेद गाँधी टोपी-(ट्रेडमार्क ) लगाये अगर आपको कोई दिखे तो वो डब्बावाला के ही सदस्य हैं . एक बारगी एक घडी ख़राब हो सकती है -पर डब्बावाले नही! आज तक अपनी अंदरूनी वजहों से कोई हड़ताल नही-इनके भी अपने उसूल हैं- काम के दौरान शराब नही,पहचान पत्र और गाँधी टोपी पहनना -नही मानने पर जुर्माना भरना होता है
एक कोडिंग सिस्टम जो माशेलकर जी(प्रमुख) के ही दिमाग की उपज है के अनुसारकाम होता है वरना इतने बड़े मुंबई में 4 लाख डब्बों को लेजाना और वापिस लाना आसान नही है -
चाहे कोई ही क्यूँ न आ जाये वो रोज़ के काम में बाधा नही बन सकता-प्रिंस चार्ल्स ने जब उनसे मिलना चाहा तो उन्होंने कहा कि वे पांच सितारा होटल में नही आयेंगे क्यूंकि काम का वक़्त है-तो उन्हें उनसे मिलने फूटपाथ पर ही आना पड़ा -बड़े गर्व के साथ बताते हैं वे कि आज बर्मिंघम में कोहिनूर के बाजू में उनका डब्बा और सफ़ेद टोपी रखी गयी है .50 प्रभावशाली व्यक्तियों की फेहरिस्त में शामिल हैं वे -गिनीस बुक में दर्ज आदि से बढ़कर उनका काम है-प्रदुषण हीन ,बिना किसी निवेश के ,शांतिपूर्ण तरीके से ,99.99% सेवा ,100% उपभोक्ता की संतुष्टि उनकी विशेषताएं हैं


सचमुच उस एक घंटे में उन्होंने हमें वो सिखा दिया जो शायद किसी प्रबंधन के संस्थान में भी कोई क्या ही सिखाएगा! मंत्रमुग्ध कर दिया उन्होंने और उन के काम ने -लगा कि बड़ी बड़ी डिग्री फीकी पड़ गयी उनके सामने !!!


                              -------------------- स्पर्श चौधरी 










2 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत अच्छा लिखा है आपने| बीच में यारों चलो गाना देख के मन भावुक हो गया और हम फिर से उन लम्हों में डूब गये|

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    1. धन्यवाद ! यारों चलो तो अभी भी मेरे लैपटॉप पर बज रहा है ...:) :P
      .एनर्जी से भर देता है सॉंग ! :)

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