शनिवार, 12 जनवरी 2013

अतिथि देवो भवः !

जैसे कहते हैं न ज़िन्दगी में सीखने के लिए कोई वक़्त नही होता......हर व्यक्ति,या कहें जीव .....घटना.....स्थान ,यात्रा;कुछ न कुछ सिखा देती है .....इसी यात्रा के दौरान फिर कुछ ऐसा ही हुआ....कि भगवान् महाकाल के दर्शन करने के बाद....और ..ओम्कारेश्वर से आगे.....किसी सुनसान इलाके में हमारी कार खराब हो गयी.....आंधी -तूफ़ान का मौसम हो रहा था....पर...भगवान् की कृपा से....पास  में दो घर दिखाई दिए......तो जान में जान आई..... फिर तो जो हुआ....उससे मुझे अतिथि देवो भवः वाली बात चरितार्थ दिखाई दी....जिसपर से शहरों में रहने के बाद थोडा विश्वास डगमगा जाता है जहाँ लोगों के पास अपने अलावा औरों के लिए वक़्त ज़रा कम ही होता है....पर...यहाँ.....दरअसल रात के ९-१० बज रहे थे....और....इस समय पर किसी मेकेनिक का मिलना मुश्किल था और....कोई उपाय भी नहीं था.....फिर भी.....गाँव के नवयुवकों ने पूरी कोशिश की जिन्हें इसकी जानकारी थी.....पर जब कुछ नही  संभव हो पाया तो....उनमे से एक ने हमें अपने घर में ही रात बिताने का सुझाव या कहें स्नेहल आग्रह किया.....हमारे पास भी और कोई उपाय नही था.....तो हम भी तैयार हो गये....और घर पर रात्रि विश्राम का यह अनुभव तो जैसे अद्भुत था.....वो एक कृषक परिवार था....हमारे बहुत मना करने के बाद भी...खुद चारों ज़मीन पर सोये....और हमें चारपाई पर सुलाया.....हम तो थके थे....बड़ी ही....शांति से सोये.....यही नही उनके बच्चे टीवी देख रहे थे.....तो मैं और मेरी बहन भी देख रहे थे.....तो बस रिमोट हाथ में देकर खुद चले गये....हमें ऐसे लग रहा था कि हम घर में हैं......इतनी आत्मीयता के साथ रहने के बात हम अगले दिन दोपहर में वहां से निकल गये.....पर अगले दिन उन नवयुवकों में से एक जिन्होंने पापा के साथ गाड़ी को ठीक करवाने ले जाने में काफी मदद की....और जिनके यहाँ हमने रात्रि विश्राम किया....उनके बच्चों का फ़ोन आया कि आप लोग अच्छे से पहुँच तो गये थे....न....और....कहने लगे अंकल आप तो हमें शर्मिंदा कर रहे हैं......दरसल पापा ने उन्हें कुछ पैसे दिए थे मदद के धन्यवाद् स्वरुप .....तो कहने लगे....गाँव में ऐसा ही होता है अंकल....और आप लोग मुसीबत में थे....तो इंसानियत के नाते तो ये बनता ही है.....मुझे लगा....कि ये इंसानियत हम शहरी शायद भूल रहे हैं....खैर ...हम वापस आ गये इस आत्मीय अनुभव के साथ.....और भगवान् को धन्यवाद करते हुए.....क्यूंकि उस सुनसान जगह पर जैसे वो परिवार हमारे लिए भगवान् की तरह था.....!!...

                                                   --------------- स्पर्श चौधरी 

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