पृष्ठभूमि: ये एक ऐसे आदमी का मौन है जिसे एक गुनाह करने के झूठे इलज़ाम में एक राजनेता द्वारा फंसाया गया है, उसे फाँसी होने वाली है, पर उसे चुप रहकर ये मंज़ूर करना पड़ रहा है, वरना उसके परिवार पर आंच आने का खतरा है।
मौन हूँ मैं और मौन है तू ,पर फंदा लेकिन बोल रहा,
दास्ताँ उन फाँसों की जो चुभ चुभ के भी दिख न सकी,
वो आँखें जो बह बह कर भी अपना सच तक कह न सकीं,
इक बिसात पर इक पिशाच है दोनों ओर से खेल रहा ,
प्यादा है तू इस बिसात का; तेरा न कुछ मोल रहा,
मौन हूँ मैं और मौन है तू, पर फन्दा लेकिन बोल रहा।
मौन है मेरा या हैं रातें खौफ की, सन्नाटों की,
मौन है मेरा या फिर चीखें हैं मेरी औलादों की,
मौन ये मेरा बड़े गहरे राज़ का कब्रिस्तान है,
जो राज़ है मैंने दबा रखे, वो राज़ ये सारे खोल रहा,
मौन हूँ मैं और मौन है तू ,पर फन्दा लेकिन बोल रहा।
सांसें मेरी अब हैं चलती, दूजों के इशारों पे,
पकड़ है जैसे उसकी अब पतझड़ पे, बहारों पे,
है सपेरा वो और उसका खौफ ही उसकी बीन है,
विष है मेरे अन्दर फिर भी, नागिन सा मैं डोल रहा,
मौन हूँ मैं और मौन है तू, पर फंदा लेकिन बोल रहा।
अन्याय के इन दरिंदों के उजले साफ़ नकाब हैं,
तेरा मेरा डर ही इन पिशाचों की खुराक है,
मेरे मौन से तो फिर भी मेरे अपनों का जीवन चलता है
सितम ये सारे देखकर क्यों तेरा खून न खौल रहा,
मौन हूँ मैं, और मौन है तू , पर फंदा ये बोल रहा।
इक दिन ऐसा आएगा जब हम तुम फंदों की भाषा जानेंगे,
इक दिन ऐसा आएगा जब हम पर्दों से बाहर आयेंगे,
वो सुबह कभी तो आएगी जब साथ तू मेरे हो लेगा,
रुत न्याय की फिर से आएगी जब सन्नाटा भी खुल के बोलेगा,
कभी तो मौन और मातम का परचम ये झुकाया जाएगा,
कभी तो साहस और न्याय का गान सुनाया जाएगा,
जो आग अभी है लगी नहीं, जो साँस अभी है रुकी हुयी,
वो आग सुलग ही जायेगी, वो सांस फिर से चल जायेगी
पर जब तक चुप है हम तुम, ये फंदा भी शर्मिंदा है,
लगे है मानो जैसे ये अंधों की आँखें खोल रहा,
मौन हूँ मैं और मौन है तू, पर फंदा लेकिन बोल रहा।
------ आकाश चौधरी
मौन हूँ मैं और मौन है तू ,पर फंदा लेकिन बोल रहा,
दास्ताँ उन फाँसों की जो चुभ चुभ के भी दिख न सकी,
वो आँखें जो बह बह कर भी अपना सच तक कह न सकीं,
इक बिसात पर इक पिशाच है दोनों ओर से खेल रहा ,
प्यादा है तू इस बिसात का; तेरा न कुछ मोल रहा,
मौन हूँ मैं और मौन है तू, पर फन्दा लेकिन बोल रहा।
मौन है मेरा या हैं रातें खौफ की, सन्नाटों की,
मौन है मेरा या फिर चीखें हैं मेरी औलादों की,
मौन ये मेरा बड़े गहरे राज़ का कब्रिस्तान है,
जो राज़ है मैंने दबा रखे, वो राज़ ये सारे खोल रहा,
मौन हूँ मैं और मौन है तू ,पर फन्दा लेकिन बोल रहा।
सांसें मेरी अब हैं चलती, दूजों के इशारों पे,
पकड़ है जैसे उसकी अब पतझड़ पे, बहारों पे,
है सपेरा वो और उसका खौफ ही उसकी बीन है,
विष है मेरे अन्दर फिर भी, नागिन सा मैं डोल रहा,
मौन हूँ मैं और मौन है तू, पर फंदा लेकिन बोल रहा।
अन्याय के इन दरिंदों के उजले साफ़ नकाब हैं,
तेरा मेरा डर ही इन पिशाचों की खुराक है,
मेरे मौन से तो फिर भी मेरे अपनों का जीवन चलता है
सितम ये सारे देखकर क्यों तेरा खून न खौल रहा,
मौन हूँ मैं, और मौन है तू , पर फंदा ये बोल रहा।
इक दिन ऐसा आएगा जब हम तुम फंदों की भाषा जानेंगे,
इक दिन ऐसा आएगा जब हम पर्दों से बाहर आयेंगे,
वो सुबह कभी तो आएगी जब साथ तू मेरे हो लेगा,
रुत न्याय की फिर से आएगी जब सन्नाटा भी खुल के बोलेगा,
कभी तो मौन और मातम का परचम ये झुकाया जाएगा,
कभी तो साहस और न्याय का गान सुनाया जाएगा,
जो आग अभी है लगी नहीं, जो साँस अभी है रुकी हुयी,
वो आग सुलग ही जायेगी, वो सांस फिर से चल जायेगी
पर जब तक चुप है हम तुम, ये फंदा भी शर्मिंदा है,
लगे है मानो जैसे ये अंधों की आँखें खोल रहा,
मौन हूँ मैं और मौन है तू, पर फंदा लेकिन बोल रहा।
------ आकाश चौधरी
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