शनिवार, 12 जनवरी 2013

स्वाद

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एक दिन नीरू की शादी हुई . लड़केवाले उसे देखने आये थे. होने वाले पति की दादी ने उससे रामयाण की चौपाईयां सुनी थीं. होने वाली सास ने भी जब तक उसके रूप और गुणों की तारीफ नहीं की तब तक उसकी माँ  को चैन की सांस नहीं आई. होने वाले ससुर ने घर की तारीफ़ की और बेटे और बहु के लिए नयी गाडी की मांग मनवा ली. होने वाले पतिदेव ने उसके कॉलेज , उसकी पढाई का पूरा ब्यौरा ले लिया . भई आज के ज़माने में सबको पढ़ी लिखी बीवी चाहिए न. फिर रिश्ता पक्का हो गया. तो आखिर शादी भी हो गयी.

कहावतों में तो चार दिन की चांदनी फिर भी मिलती है नीरू को तो वो भी नसीब नहीं हुयी. दुसरे ही दिन जब शगुन का मीठा बनाने की बात चली तो पता चला की बहुरानी को तो बस चाय ही बनानी आती है. तब उस दिन मिल्क मेड के गुलाब जामुन बनाकर किसी तरह काम चलाया गया. मेहमानों के जाते ही उसे सबकी बातें सुनने को मिली की इतनी बड़ी हो गयी अब तक खाना बनाना नहीं सीखा?? पता नहीं लोग अपनी बेटियों की शादी क्यों कर देते हैं जब उन्हें कुछ सिखा के नहीं भेजते तो. नीरू को माँ ने सिखाया था हर परिस्थिति में सामंजस्य बिठा कर रखना. उसने माफ़ी मांगी और खाना बनान सीख लिया धीरे धीरे. 

कुछ दिन शान्ति से कटे फिर एक दिन तूफ़ान आ गया. नीरू को ऑफिस में एक फाइल पूरी कर के देनी थी जिसको वो ननद की शादी के चलते वक़्त पे पूरा नहीं कर पायी थी.  देर तक रुक कर उसने काम किया तो उसको  घर छोड़ने आया उसका एक पुराना दोस्त जोकि उसी के साथ काम भी करता था .  बस ये देखते ही ससुराल  के सब लोग उसे बातें सुनाने लगे कि उसे घर की मर्यादा का बिलकुल भी ध्यान नहीं है.

उस रात नीरू और उसके पति में झगडा हो गया. वो बोला कि तुम कुछ भी ठीक से नहीं कर सकती हो और फिर बेचारी बनकर सबकी सहानुभूति जीतना चाहती हो बस. जो खाना तुम बनाती हो उसे क्या खाना कहते हैं?? माँ के हाथ के खाने जैसा स्वाद ही नहीं. आते ही मेरे ऊपर राज चलाना चाहती हो. जूते ऐसे मत रखो, सिगरेट मत पियो, ज्यादा देर से घर मत आया करो. और जो तुम किसी के भी साथ इतनी रात को घर आती हो, पडोसी बातें बनायेंगे तो क्या जवाब देंगे हम उनको?? इतना ही शौक है अगर ऑफिस में रुकने का तो वहीँ पे रह जाती न घर आने कि क्या ज़रुरत है??? ये सब सुनकर नीरू कि आँखों में आसूं आ गए. उसका पति फिर चिल्लाया कि अब एक और नाटक शुरू करने कि ज़रुरत नहीं है. 

अगली सुबह किसी ने उसपर ध्यान नहीं दिया.  उसे ऑफिस भी नहीं जाने दिया गया. उसके बाद पूरे दिन नीरू सोचती रही कि मैंने क्या बिगाड़ा था किसी का जो ऐसे लोग मुझे मिले हैं. मेरी किसी को परवाह नहीं और हर छोटी बात को बड़ा इलज़ाम बना कर मेरे सर डाल दिया जाता है. उस दिन उसने फैसला किया की अपने पति को उनकी सारी बातों का जवाब देना है. उस शाम जब पति ने उससे कुछ बोलना चाहा तो नीरू ने बीच में टोक कर बोलना शुरू किया . " घर पे पढ़ी लिखी बीवी की क्या ज़रुरत है जब उसे अपनी मर्ज़ी से जीने का हक देना ही नहीं है तो. मुझे खाना बनाना नहीं आता,  नहीं बनाती अच्छा खाना , क्योंकि जब मेरे पढने के दिन थे तो मैं बस पढ़ती थी आपके और आपकी बहिन  की तरह. किसी प्रवेश परीक्षा में लड़कियों के खाना बनाने के गुर को देख कर ज्यादा मार्क्स नहीं दिए जाते.  और रहा ऑफिस में ज्यादा देर रुक कर घर देर से आने का सवाल तो जब आपको ऑफिस का कोई काम करना होता है किसी डैडलाइन  में और आप नहीं कर पाते हैं तो क्या आपको ज़रूरत नहीं होती रुककर काम करने की?अगर मेरा कोई दोस्त मुझे छोड़ने घर आया तो उसको शुक्रिया कहने की जगह मुझ पर ही  दोष डाल रहे हो. जब आप अपने ऑफिस से किसी के साथ घर आते हैं तो उसके लिए तो चाय नाश्ता सजाया जाता है. सिगरेट आपकी खुद की भलाई के लिए छोड़ने को कहती हूँ मैं. मैंने अपना प्रमोशन  लेने से मन कर दिया ताकि बीवी की कमाई ज्यादा देखकर कहीं आपके अहम् को ठेस न पहुंचे. मैंने अपने घर बदला, नए लोगों को अपना परिवार माना, अपनी पहचान भी बदल दी शादी के बाद और आप अपने कमरे में जूते रखने की जगह भी नहीं बदल सकते क्या?? पता है बहुत सोचने के बाद मुझे ध्यान आया की एक चीज़ है जिसमें आपकी माँ के हाथ जैसा स्वाद आएगा" ये कह कर नीरू ने अपने पति को जोर का एक तमाचा मारा और पूछा इसमें तो आया होगा न माँ के हाथ जैसा स्वाद.

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