बुधवार, 13 फ़रवरी 2013

गुमनाम मौतें



                                                             

उनकी मौत पर,

ना कभी टी.वी. एंकरों ने चीख चीख कर बहसें की,

ना कभी बुद्धिप्राणियों ने लच्छेदार भाषाओँ में,

मानवाधिकार की वकालत की,

ना ही अखबारों के सम्पादकीय में उनका जिक्र था,

ना ही नेताओं के भाषणों में उनका फ़िक्र था,

ना तो कोई मोमबती लेकर इण्डिया गेट पर जलाने आया ,

ना ही किसी शहर को जबरदस्ती बंद कराया गया,

ना ही किसी ने फेसबुक पर इसे लेकर कोई टिप्पणी की,

ना ही किसी की भावनाए कभी आहत हुई,

ना ही किसी ने भेदभाव की शिकायत की,

ना ही किसी ने न्याय मिलने पर ख़ुशी जताई,

ना ही किसी ने देशभक्ति/द्रोह की रोटियाँ सेंकी,

ना ही किसी ने स्वायत्ता की सियासी गोटियाँ फेंकी,

किसी ने जहमत नहीं उठाई,

मरने के पहले या बाद में,

कहीं भी स्पीड पोस्ट भेजने की,

बस एक गुमनाम मौतों के रजिस्टर में ,

एक संख्या जोड़ दी गयी ,

कभी कभी आलसवश वह भी छोड़ दी गयी,

उनके मौत के पहले कभी,

उनकी अंतिम इच्छा भी नहीं पूछी गयी ,

यदि पूछा भी जाता तो शायद वह ,

एक कम्बल और बिस्तर से ज्यादा कुछ नहीं बताता ,

मरने से पहले काश वह, एक दिन चैन से सो तो पाता.

                                                                           - नेपथ्य निशांत

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