वो कल की एक मुलाकात
एक लम्हा आज भी है वहाँ थमा हुआ
वक्त बढ़ चला
औ मैं भी कैद उसमें
पर नज़रों की दूसरी तरफ
वही द्रश्य है
मेरा ज़हाँ खुद को किये मेरे हवाले
मौजूद है समीप ही
वो चेहरा उसका जुस्तजू से भरा हुआ
मुस्कान अधरों पे अश्रु छलके लिए हुए
कुछ बहके हुए ,कुछ डरे हुए
अब तो डरने लगा हूँ मैं भी
उसकी तमन्नाओं से, उसकी उमीदों से
जिस ज़हाँ में कल का भरोसा नहीं
वहीँ मेरा ज़हाँ कल में खोया हुआ है !!
....... शक्ति शर्मा
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें