खिला है जो आज,कल वो भी
मुरझा के झर जायेगा,
उसकी कोमल सी पंखुड़ियां
तिनका तिनका बिखर जायेंगी,
हवा में न रहेगी उसकी भीनी सी
वो खुशबू , धूल संग कुचला जाएगा।
शायद बाकी रहें कुछ तसवीरें
या शायद किसी किताब के
पन्नों में बस जाए उसकी महक,
पर पूछे कुसुम सवाल ये ,
कि ओ माली, जब इसी मिटटी
में था मिलाना, तो क्यों दिया
ये रूप, क्यों दी सुगंध, जब
दो पल में सब है छीनना ?
मुस्कुराते माली ने कहा की अरे
पगले, यही तो नियम है, खिलकर
मुरझाना, हाँ, यही तेरी नियति भी।
सवाल जो तूने पूछा है, तो जवाब भी सुन।
अपने दो पलों में तू इसी रूप, इसी
खुशबू से, दुनिया को खूबसूरत बनाता है,
उदास चेहरों पे मुस्कानें लाता है,
यही दो पल हैं तेरे पास पर तू यादें
बनकर जिए जाता है।
खिल तू कुछ इस तरह कि
दूर दूर तक फैले तेरी खुशबू,
खिल कुछ इस तरह कि नए
खिलते फूलों को तुझसे सीख मिले,
फिर मिटकर भी तू रहेगा अमर।
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