मंगलवार, 12 मार्च 2013

ज़िन्दगी के पन्नों से ! -3

          
                         

                                                    एक फलसफा और एक दुआ !!                
                          
ज़िन्दगी कब क्या सिखा जाए पता नहीं ! ज़िन्दगी गम का सागर भी है ..हँस के उस पार जाना पड़ेगा ....पिछले कुछ  दिनों ' किशोरदा के इस गीत ने मानों मेरी ज़िन्दगी में अपनी रंगत सचमुच दिखानी शुरू की है ! कभी तो कुछ ऐसा हो जाता है कि मैं अचानक बेहद खुश महसूस  करने लगती हूँ तो कुछ लम्हे मायूस कर जाते हैं .शायद इसे ही ज़िन्दगी कहते हैं !जहां उपलब्धियां ,अपने दिल की मर्ज़ी का काम करने पर मिलने वाली ख़ुशी ...आह्लादित करती है वहीँ कभी कभी पता नही सब कुछ दुखी करता है ....पर हम अपने से जुड़े हर इंसान को अपनी खुशियों और गम में शामिल करते हैं . उनकी सलामती की दुआ करते हैं .उनकी समस्याओं को साझा भी करते हैं और उनके साथ  भी अपनी समस्याओं को साझा करते हैं .हमारी ज़िन्दगी  में 'अपनों' की अहमियत सबसे बढ़कर है।अगर हम आगे बढ़ते हैं तो ये वही होते हैं जो जो शाबाशी देते हैं सबसे पहले ...और गिरते हैं या दिशा भटकते हैं तो भी ये ही हमें प्रेरणा देते हैं .इसीलिए मुझे सबसे ज्यादा अगर किसी चीज़ का डर होता है तो वह है अपनों को खोने का ! यही वजह है कि जागृत या सुप्त अवस्था दोनों में ही मैं अपने शुभचिंतकों ,मित्रों और परिवार के स्नेह की भागीदार हमेशा बनी रहना चाहती हूँ . क्यूंकि आपके 'अपनों' से अधिक इस दुनिया में शायद कोई आपके बारे में सोचेगा ....पर जब अचानक आपको पता चले कि उन्ही में से एक तकलीफ में है ....तो चिंता करना स्वाभाविक है !  ज़िन्दगी सचमुच हर पल एक इम्तिहान है ,अब ईश्वर या प्रकृति ने आपके लिए क्या सोचकर रखा है आप नही जानते .उसके हर इम्तेहान में दरअसल आपको और भी मज़बूत बनाने का रहस्य छुपा होता है ....पर जो भी हो हम खासकर  ऐसे हालातों में थोड़ी देर के लिए विचलित हो उठते हैं ....पर ज़िन्दगी इन सबसे आगे बढ़कर जीने का नाम है ....मेरी माँ की जब दिसंबर २०११  में सर्जरी हुई थी ....मैं हर पल उनकी कुशलता के समाचार के इंतज़ार में रहती थी ....और पहली बार मुझे उन्हें खोने का डर लगा जो हो सकता है अब हास्यास्पद लगता हो ,आज ही भीषण गर्मी और कार्य की अधिकता के कारण पापा बोले थोडा बीमार हूँ तो थोडा चिंता हुई ! पता नही मुझे हमेशा से हॉस्पिटल ,मौत या फिर किसी के जाने के बाद के खालीपन से डर लगता है ...जानती हूँ छोटी मोटी बीमारियाँ तो ज़िन्दगी में होती रहती हैं .लोग तो बड़ी बड़ी बीमारियों से जंग  लड़ आते हैं लेकिन  सिर्फ यही सुनकर कि कोई बीमार है ....भले ही वह औपचारिक मित्र भी हो तो चिंता का एक ख्याल ज़ेहन में आता ही है. माना आजकल यह सब दूसरों के बारे में ज़ज्बाती होना सही नही है .पर हमसे जुड़ा कोई भी हो ....चाहे हमने उससे एक ही बार बात की हो तो भी उसकी कमी और बातें याद आती ही हैं हालाँकि मैं खुशनसीब हूँ कि मुझे भगवान् ने इतने प्यारे लोगों के सुरक्षा और स्नेह के घेरे में रख रखा है पर दुआ करती हूँ जिनके पास अपने नही हों उन्हें मैं भी अपनापन दे पाऊँ क्यूंकि कुछ रिश्ते खून के न होते हुए भी स्नेह और सहयोग के लिए हमेशा तैयार रहते हैं .

तो इस विचार-मंथन से जो बात निकल कर सामने आई कि ये सब ज़िन्दगी का ही हिस्सा है -किसी के भी साथ हो सकता है. ..तो शान्ति से झेलकर उससे बाहर निकल आयें ! और आगे बढें .जब तक साँसे हैं ....इस के इन इम्तिहानों को तो चाहे मजबूरी में चाहे हँसकर पार करना ही है !!

 -स्पर्श चौधरी "

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