सोमवार, 11 मार्च 2013

ज़िन्दगी के पन्नों से! - 2

कभी कभी मैं सोचती हूँ, कि लोग हमको खुश करने के लिए दो standard बातें बोलते हैं:
first, कि जो होता है, अच्छे के लिए होता है.
second, कि ending तक सब ठीक हो जायेगा.

ऐसा नहीं होता है! ये सब बस कहने की बातें हैं. दूसरों को बहलाना हमेशा आसान होता है, जब खुद की band बजती है, तो ये बातें समझ नहीं आतीं. और ऐसा कहने का क्या logic है कि ending तक सब ठीक हो जायेगा?? कितनी सारी movies होती हैं, जिनकी ending बुरी होती है, और खाली movies ही नहीं, real life में भी कितने सारे लोगों की stories sad होती हैं! कोई हार जाता है, या किसी का बुरा वाला कटता है, तो भी सब आकर उसको यही बोलते हैं कि tension न ले, सब ठीक हो जायेगा! उनको कैसे पता है कि सब ठीक हो जायेगा?? future देख कर तो नहीं बैठे होते न ये लोग!!


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