सोमवार, 11 मार्च 2013

ज़िन्दगी के पन्नों से !

         

# ऐसा क्यूँ होता है कि हम जिस चश्मे से देखते हैं हमको सभी वैसे ही दिखाई देते हैं और अगर ऐसा कोई हो भी जो  बिलकुल वैसा न हो तब भी सिर्फ आँखों पर पड़े चश्मे में  वह जैसा दिखेगा हम उसी पर विश्वास करते हैं !! और फिर गलतफहमियाँ   उठती हैं दो लोगों के दरमियान !!   

# मैं यह जानती हूँ कि आजकल के प्रैक्टिकल ज़माने में सब अपने में मगन रहते हैं -काम से काम रखते हैं -पर उन लोगों का क्या -जिन्हें आजकल के वक़्त में बेवकूफ कहा जाता है- क्यूंकि जिनके लिए अगर उनके दिल में थोड़ी सी भी केयर होती है तो उनसे जुडी छोटी सी परेशानी उन्हें भी प्रभावित करती है कहीं न कहीं ....चाहे सामने वाला उन्हें अपना शुभचिंतक मानता हो या दुश्मन या सतही दोस्त ! पर उन्हें लगता है कि दूसरों की चिंता को अपनी चिंता का हिस्सा बनाने की क्या ज़रुरत है किसी को -पर हम उन्हें कभी सराहते नही बल्कि उन्हें अपराध -बोध से ग्रसित कर देते हैं -खैर भावनाओं में बहने का वक़्त कहाँ है हमारे पास! सुम-वेदना -तो दूर की बात है ...वैसे क्या कभी कभी लगता नही आपको कि निःस्वार्थ रूप से 'सब' के बारे में सोचना फ़िज़ूल है आजकल क्यूंकि क्या मालूम आपकी मदद का स्वागत तो दूर आप ही को लोग गलत समझ बैठें -अरे क्या पड़ी है किसी को किसी के फटे में पाँव डालने की भला ! अरे अपने काम से काम रखो न साहब !! और वैसे भी ज्यादा व्यक्तिगत बातें सिर्फ घनिष्ठ -तम मित्रों के साथ साझा होती हैं अक्सर !

   इसीलिए मेरे प्यारे फेसबुक मित्रों माफ़ कीजियेगा आप में से कुछ चुनिन्दा ही हैं जो मेरे नज़दीक हैं सचमुच !!   तो जनाब आप भी फेसबुक से परे ऐसे ही घनिष्ठ मित्रों को पहचानिए और बस उन्ही के साथ दिल खोल के बातें कीजिये क्यूंकि वे ही हैं जो आपको शायद जज नहीं करेंगे वरना तो कहीं आपकी भलमनसाहत उन्हें रास नही आये ! वह क्या है न आजकल सलाह ही ऐसी चीज़ है जो मुफ्त में अगर मिलती है तो लोग उसे संदेह की दृष्टि से देखते हैं -लोग हैरान हो जाते हैं -आदत नही रही न अब ...किया भी क्या जा सकता है -हम जैसे अधिकांश लोगों को देखते हैं उसी तराजू पर सभी को तौलते हैं !!!
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