गुरुवार, 18 अप्रैल 2013

क्या अपराधों की जन्मभूमि बन रही है राजनीति !




राजनीति के  एकदम सफेद चक गलियारों में आज ताज़े खून के धब्बों  का होना कोई नई या ख़ास खबर नही है ! राजनीति के मायने अब बदल गये हैं .वैसे राजनीति के खेल तो ऐसे ही चलते आये हैं बरसों से पर अब राजनीति की आड़ में अपराधियों को खासी पनाह मिल रही है या यह कहिये कि उन्हें इस सफ़ेद पोशाक का जो नाजायज़ फायदा मिल रहा है वो अब अपराध की श्रेणी में आ चुका है .इसमें कोई दो राय नही कि वोट बैंक की खातिर  नेतागण कुछ भी कर सकते हैं .1992 के बाबरी विध्वंस को क्यूँ नही रोका गया ....सामने खड़े होकर सत्तादल के कार्यकर्ता तमाशा देखते रहे क्यूँ ..कहीं बहुसंख्यक हिन्दु भड़क गये तो .....! 
     अब राजनीति में प्रवेश करने की वजह जनता की सेवा नही रह गयी है . अब नेतागिरी का मतलब अधिकांशतः सिर्फ सत्ता में आना और सत्ता के नाम पर गुंडागर्दी को शह देना  रह गया है ताकि आम लोगों पर उनका रौब बना रहे .इसी खौफ के चलते लोग इनकी हरक़तों का विरोध करने से भी खार खाते हैं ,क्यूंकि अगर इनमें से कोई भी सच्चाई का साथ देने के लिए आगे बढ़ता है तो उसे रोकने के लिए ये गुंडे-नेता अपने छुटभैय्ये आदमियों से उनके इन बढ़ते कदमों को रुकवा देते हैं ;उन्हें और उनके करीबियों को जान  से ही मरवा देते हैं ! ' हमसे जो टकराएगा वो चूर चूर हो जाएगा ' की धमकियों के ज़रिये लोगों में दहशत फैला देने से  उनके राजनीतिक मंसूबे पूरे होने में कोई खलल भी नही होता  !! उत्तरप्रदेश ,बिहार ,राजस्थान और मध्यप्रदेश के कुछ हिस्सों में तो खुल्लमखुल्ला धड़ल्ले से क़ानून और खाकी वर्दी को ठेंगा दिखाकर या फिर उसकी कुछ कमज़ोर कड़ियों को अपने साथ मिलाकर संविधान और जिन मतदाताओं के कारण वे कुर्सी पर काबिज़ हुए हैं उन्ही का बड़ी बेशर्मी से मखौल उड़ा रहे हैं ! और इन्ही हिस्सों में ही क्यूँ अब तो सभी जगह खासकर भारत में तो राजनीति आपको सारे अधिकार दे देती है -सारे -किसी की इज्ज़त लूटने का,किसी को अगवा करवाने का ,किसी की हत्या करवाने का ,और हर किस्म का कोई भी अत्याचार करने का ! क्यूँ ...अरे भाई हम तो नेता हैं ..नेता ! हमें कौन पकड़ेगा और अगर जाँच के घेरे में आ भी गये तो हम  हाथ पर हाथ धरे यूँ अपनी कुर्सी और इज्ज़त को जाते हुए देखते रहेंगे क्या भैय्या ?  ... तभी तो 'हम ' अभी तक उस मुस्लिम पुलिस अधिकारी के केस में गिरफ्तार नही हुए ....अरे ऐसे ही थोड़ी न 'राजा भैय्या 'कहलाते हैं हम ;हमारी लोगों तक पहुँच,रुतबा ,हमारे कार्यकर्ताओं की पकड़ के कारण तो मुख्यमंत्री साहब ने भी;  हमारे नाम पर इतने अपराध दर्ज होने के बाद भी हमें अपने मंत्रिमंडल में शामिल किया ;सी.बी. आई .तक को चकमा दे दिए हम ! हाँ अब ये इस्तीफ़ा देना तो लोगों का मुँह बंद कराने का एक तरीका है ...वो क्या है न अभी चुनावों में तो जनता ही हमारी इष्ट है !! तो उनके क्रोध को तो शांत करना होगा न !! 
         अब इन्ही महाशय सचिन सूर्यवंशी को देख लीजिये ,ये ठहरे वर्ली चौकी के एक अदने से नए नवेले सब-इंस्पेक्टर और हमें ही ट्रैफिक के कायदे कानून सिखाने चले थे .....अब खुद ही अपनी नौकरी से हाथ धो लिए न !! अब थोड़ी न हमारे साथी ऍम .एल. ए .चुप बैठेंगे .....!!!!   इतना ही नही हम चाहे किसी सामूहिक बलात्कार केस के आरोपों को भी नकार सकते हैं ....थोड़ी न मनाही है कि कोई तथाकथित 'बलात्कारी  ' संसद जैसी गरिमा वाले स्थल में नही प्रवेश कर सकते .!! 

प्रिय पाठक-पाठिकाओं  ,दरअसल अपराध आज राजनीति के अन्दर इस हद तक  समाविष्ट हो चुका है कि ज़ेहन में इस विषय में बेहद क्षोभ भरा हुआ है जो उपर्युक्त  शब्दों में इस  त्रासदी  के उदाहरण के व्यंग्यात्मक  रूप में बाहर निकला है !! आंकड़ों पर जाए बिना ही हम सभी जानते हैं कि राजनीति की गोटियाँ खेलने वाले हर शख्स को किन नज़रों से देखा जाता है और हो भी क्यूँ न !
           बहरहाल  आज कितने युवा हैं जो राजनीति में जाना चाहते हैं?-खुद मुझे भी जनता की सेवा करने के लिए राजनीति बेहद कठिन परन्तु सटीक उपाय सूझ पड़ता है पर परिवार इस बात से असहमत है क्यूंकि अब तो 'डर्टी पॉलिटिक्स ' ही शेष रह गयी है- एक आम युवा जो संवैधानिक अधिकारों और शक्ति के बल पर जनता की समस्याओं को हल करना चाहता है वो भी ऐसा सोचने से डरता है क्यूंकि जो हैं वो उन्हें सीधे साधे थोड़ी न टिकने देंगे और वैसे भी एक सड़ी हुई मछली सारे तालाब को ख़त्म कर देती है फिर यहाँ तो सारा तालाब ही दुर्गन्ध से सराबोर है -अब कोई दूसरी स्वस्थ  मछली वहाँ  कितने दिन टिक पायेगी !! राजनीति और जनता के मतों के दम पर चुन कर आये हुए उनके प्रतिनिधि होने का अब सिर्फ मिथक रह गया है ...सब अपने स्वार्थ तो पूरे कर ही रहे हैं पर उन स्वार्थों को पूरा करने के लिए लोगों की जान,इज्ज़त, और भी सब कुछ छीन लेने में कोई हिचकिचाहट नही होती इन्हें !
             संसद में बैठकर एंटी-रेप बिल के बारे में चर्चा में वे सांसद भी शामिल थे जिनके खिलाफ खुद मोलेस्टेशन और बलात्कार के संगीन जुर्म दर्ज थे ! कितनी बेशर्मी की  बात है यह -क़ानून को अपने हाथों का खिलौना समझने वाले क़ानून बनाते हैं इस देश में ! चुनाव आयोग जो एक स्वतंत्र इकाई है विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के कार्यकारी विभाग की  -वह कैसे ऐसे हत्यारों,दुष्कर्मियों को चुनाव लड़ने की अनुमति दे सकता है ! तो राजनीति से अपराध की गंदगी दूर करना भले ही कितना मुश्किल हो पर नामुमकिन नही है -अगर अच्छे मूल्यों वाले  युवा राजनीति में आयें और देश की संवैधानिक ईकाईयाँ बेख़ौफ़ होकर अपने अधिकारों का बखूबी प्रयोग करके अपना फ़र्ज़ निभाएं !!  

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