बुधवार, 26 जून 2013

आइये जाने #5 जब भारत पहली बार क्रिकेट विश्व चैम्पियन बना

                           

जब भारत पहली बार क्रिकेट विश्व चैम्पियन बना

25 जून 1983. उस दिन शनिवार था. लॉर्ड्स के मैदान पर बादल छाए हुए थे. जैसे ही क्लाइव लॉयड और कपिल देव मैदान पर टॉस करने आए सूरज ने बादलों को पीछे ढकेला और दर्शकों ने ख़ुशी से तालियाँ बजाईं.
कपिल टॉस हारे और लॉयड ने भारत से पहले बैटिंग करने के लिए कहा. एंडी रॉबर्ट्स ने बिग बर्ड जॉएल गार्नर के साथ गेंदबाज़ी की शुरुआत की. राबर्ट्स ने भारत को पहला झटका दिया जब दो के स्कोर पर दूजों ने सुनील गावसकर को कैच कर लिया.

विश्व कप से जुड़े रोचक तथ्य

1. विश्व कप में सबसे धीमी गति से रन बनाने का रिकॉर्ड भारत के लिटिल मास्टर सुनील गावसकर के नाम है, जिन्होंने वर्ष 1975 के पहले विश्व कप में इंग्लैंड के ख़िलाफ़ 174 गेंदों का सामना करते हुए सिर्फ़ 36 रन बनाए थे. जिसमें उन्होंने सिर्फ़ एक चौका मारा था. उस समय 60-60 ओवर का मैच होता था.
2. वर्ष 1996 के विश्व कप में ऑस्ट्रेलिया और वेस्टइंडीज़ ने सुरक्षा कारणों का हवाला देते हुए श्रीलंका में खेलने से इनकार कर दिया. ये दोनों मैच श्रीलंका के हक़ में गए. उसी विश्व कप के सेमी फ़ाइनल में भारत और श्रीलंका के बीच मुक़ाबला हुआ. लेकिन दर्शकों के ख़राब व्यवहार के कारण ये मैच भी श्रीलंका की झोली में गया. हालाँकि श्रीलंका उस समय काफ़ी अच्छी स्थिति में था और उसका जीतना तय था.
3. विश्व कप की शानदार पारियों में से एक 1983 में कपिल देव ने ज़िम्बाब्वे के ख़िलाफ़ खेली थी. उनकी 175 रनों की नाबाद पारी की न वीडियो रिकॉर्डिंग मौजूद है और न ऑडियो कमेंट्री. क्योंकि कैमरामैन हड़ताल पर थे.

....जब भारत ने जग जीता

भारत के बड़े शहरों में जश्न का माहौल था तो गांव में लोग अचानक पटाख़ों का आवाज़ से जाग गए थे, फुलझड़ियां और पटाखों से रात दिन में तब्दील हो गया था. भारत ने इतिहास रचा था काफ़ी जद्दोजेहद के बाद, कुछ आकर्षक पारियों की बदौलत और सब मिलाकर टीम भावना का उसने एक अदभुत नमूना पेश किया था.

तिरंगे ही तिरंगे 

वेस्ट इंडीज़ की अंतिम जोड़ी गार्नर और होल्डिंग स्कोर को 140 तक ले गई लेकिन मोहिंदर ने तय किया कि अब बहुत हो चुका. होल्डिंग के आउट होते ही विश्व कप भारत का था. लॉर्ड्स के ऐतिहासिक मैदान पर चारों तरफ़ दर्शक ही दर्शक थे.
लॉर्ड्स की बालकनी पर कपिल ने शैम्पेन की बोतल खोली और नीचे नाच रहे दर्शकों को सराबोर कर दिया. ड्रेसिंग रूम के माहौल के बारे में मैंने स्वर्गीय राज सिंह डूंगरपुर से पूछा था.
उनका जवाब था, "ऐसा लग रहा था कि कोई शादी हो रही हो. लेकिन शादी में एक दूल्हा होता है लेकिन उस दिन भारतीय ड्रेसिंग रूम में 11 दूल्हे थे. मैं ये कभी नहीं भूल सकता कि भारतीय टीम को बधाई देने उसके ड्रेसिंग रूम में पूरी वेस्ट इंडीज़ की टीम आई सिवाए उनके चार फ़स्ट बॉलर्स के. उन्हें दुख इस बात का था कि उन्होंने तो अपना काम कर दिया दिया था लेकिन धुरंधर बल्लेबाज़ों के होने के बावजूद वेस्ट इंडीज़ की टीम 184 रन भी नहीं बना पाई."
भारतीय क्रिकेट के इतिहास का ये सबसे सुनहरा क्षण था. उस समय लॉर्ड्स के मैदान पर तिरंगे ही तिरंगे थे.
कीर्ति आज़ाद याद करते हैं, "आप मुझसे विश्व कप की बात कर रहे हैं और वह दृश्य बिल्कुल मेरे सामने आ गया है. मेरे शरीर में सिहरन दौड़ रही है और मेरे रोंगटे खड़े हो रहे हैं. वो एक ऐसा अनुभव था जो मैं अपने जीवन में शायद कभी भी नहीं पा सकूँगा. कोई भी इंसान किसी भी खेल को खेले वो चाहता है कि वो इसके शिखर तक पहुँचे. वो दृश्य अभी भी मेरे सामने है कि हज़ारों प्रवासी भारतीय तिरंगे झंडे ले कर सामने खड़े हैं. ये एक ऐसा अनुभव है जिसे मैं शब्दों में बता नहीं सकता महसूस ज़रूर कर सकता हूँ."


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