सोमवार, 24 जून 2013

आपकी कलम से #5 "मेरा गाँव"

                                                                        


बड़ा भोला बड़ा सादा बड़ा सच्चा है                                                              
तेरे शहर से तो मेरा गाँव अच्छा है                                             

वहां मैं मेरे बाप के नाम से जाना जाता हूँ
और यहाँ मकान नंबर से पहचाना जाता हूँ

वहां फटे कपड़ो में भी तन को ढापा जाता है
यहाँ खुले बदन पे टैटू छापा जाता है

यहाँ कोठी है बंगले है और कार है
वहां परिवार है और संस्कार है

यहाँ चीखो की आवाजे दीवारों से टकराती है
वहां दुसरो की सिसकिया भी सुनी जाती है

यहाँ शोर शराबे में मैं कही खो जाता हूँ
वहां टूटी खटिया पर भी आराम से सो जाता हूँ

यहाँ रात को बहार निकलने में दहशत है

मत समझो कम हमें की हम गाँव से आये है
तेरे शहर के बाज़ार मेरे गाँव ने ही सजाये है

वहाँ इज्जत में सर सूरज की तरह ढलते है
चल आज हम उसी गाँव में चलते है
............. उसी गाँव में चलते है !





कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें