राजनेताओं का चरित्र
मौकापरस्ती तो हमारा
हुनर है । और जब बात राजनेताओं की हो तो थाली के बैगन कहावत एकदम सटीक
सिद्ध होती है । दल बदलू कानून के आने से पहले तो मानो राजनीति अवसरवाद का
ही अखाड़ा थी । सब अपनी-अपनी झोली भरें ,विचारधारा
जाये तेल लेने ।
काका ऐसे मिथ्या चरित्र वालो का खूब मज़ाक उड़ाते थे । आज काका की हास्यमाला का एक पुष्प समर्पित है पाठकों को उस कविता के रूप में जो इसी भाव को सामने लाती है , शीर्षक है -" आई में आ गए " ।
ये कविता उनकी सर्वाधिक जनप्रिय कविताओं में से एक है -
सीधी नजर हुयी तो सीट पर बिठा गए।
टेढी हुयी तो कान पकड कर उठा गये।
सुन कर रिजल्ट गिर पडे दौरा पडा दिल का।
डाक्टर इलेक्शन का रियेक्शन बता गये ।
अन्दर से हंस रहे है विरोधी की मौत पर।
ऊपर से ग्लीसरीन के आंसू बहा गये ।
भूखो के पेट देखकर नेताजी रो पडे ।
पार्टी में बीस खस्ता कचौडी उडा गये ।
जब देखा अपने दल में कोई दम नही रहा ।
मारी छलांग खाई से "आई" में आ गये ।
करते रहो आलोचना देते रहो गाली
मंत्री की कुर्सी मिल गई गंगा नहा गए ।
'काका' ने पूछा 'साहब ये लेडी कौन है'
थी प्रेमिका मगर उसे सिस्टर बता गए ।
- काका हाथरसी
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