बुधवार, 25 जून 2014

रात यों कहने लगा मुझसे गगन का चाँद

राष्ट्रकवि की उपाधि से सम्मानित रामधारी सिंह 'दिनकर' की एक अद्भुत कविता : 'रात यों कहने लगा मुझसे गगन का चाँद' । जीवन की अनेक दृष्टियोँ को ध्यान मेँ रखकर इस कविता को पढ़ने से कई सत्य एवं लक्ष्य सामने आते हैँ। कितनी खूबसूरती के साथ दिनकर जी ने मानव के भावों एवं स्वप्नों का इस कविता में वर्णन किया है :

रात यों कहने लगा मुझसे गगन का चाँद,
आदमी भी क्या अनोखा जीव है ।
उलझनें अपनी बनाकर आप ही फँसता,
और फिर बेचैन हो जगता, न सोता है ।
जानता है तू कि मैं कितना पुराना हूँ?
मैं चुका हूँ देख मनु को जनमते-मरते ।
और लाखों बार तुझ-से पागलों को भी
चाँदनी में बैठ स्वप्नों पर सही करते।
आदमी का स्वप्न? है वह बुलबुला जल का
आज उठता और कल फिर फूट जाता है ।
किन्तु, फिर भी धन्य ठहरा आदमी ही तो
बुलबुलों से खेलता, कविता बनाता है ।
मैं न बोला किन्तु मेरी रागिनी बोली,
देख फिर से चाँद! मुझको जानता है तू?
स्वप्न मेरे बुलबुले हैं? है यही पानी,
आग को भी क्या नहीं पहचानता है तू?
मैं न वह जो स्वप्न पर केवल सही करते,
आग में उसको गला लोहा बनाता हूँ ।
और उस पर नींव रखता हूँ नये घर की,
इस तरह दीवार फौलादी उठाता हूँ ।
मनु नहीं, मनु-पुत्र है यह सामने, जिसकी
कल्पना की जीभ में भी धार होती है ।
वाण ही होते विचारों के नहीं केवल,
स्वप्न के भी हाथ में तलवार होती है।
स्वर्ग के सम्राट को जाकर खबर कर दे
रोज ही आकाश चढ़ते जा रहे हैं वे ।
रोकिये, जैसे बने इन स्वप्नवालों को,
स्वर्ग की ही ओर बढ़ते आ रहे हैं वे।

2 टिप्‍पणियां:

  1. आदमी का स्वप्न? है वह बुलबुला जल का
    आज उठता और कल फिर फूट जाता है ।
    किन्तु, फिर भी धन्य ठहरा आदमी ही तो
    बुलबुलों से खेलता, कविता बनाता है ।

    Awesome lines by Dinkarji. What a human can't do ?
    अगर इंसान चाहे तो पत्थर को भी पानी बना सकता है !!

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  2. मैं न वह जो स्वप्न पर केवल सही करते,
    आग में उसको गला लोहा बनाता हूँ ।
    और उस पर नींव रखता हूँ नये घर की,
    इस तरह दीवार फौलादी उठाता हूँ ।

    Dinkar ji's poems truely depict human struggle and will power _/\_

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