मध्य प्रदेश के मालवा क्षत्र में आज से कुछ सौ साल पहले बसा था एक खूबसूरत शहर। जिसे अक्सर अलग अलग नामो से पहचाना गया, जिसपर राज भोज से लेकर मुगलों तक अनेक राजाओं ने राज किया, जहाँ बाज बहादुर और रूपमती के मुहब्बत की और जहां ताज महल बनाने का ख़याल पहली बार पनपा । मुहब्बत का शहर, खुशी का शहर : मांडू।
शहरी भीड़ भाड़ से बेहद दूर, ना इमारते, न शोर। न पर्यटक स्थलों सा दिखावा ही। इतिहास मानो हर और बिखरा पड़ा है। 72 किलोमीटर परिधि का किला और तीन हज़ार से ज्यादा महल और अवशेष। जहां कभी नौ लाख लोग रहा करते थे अब वहाँ अब बस उनकी कहानियां गूंजती है।
महल, इमारते इतनी अद्भुत, ऐसी कारीगरी, ऐसी तरकीबें दाँतों तले अंगुली दबा लें। कोई दो दिन में महल खडा कर गया, तो किसी ने पंद्रह सौ रानियों के लिए सात मंजिला हरम बना दिया । रूपमती और बाज बहादुर के संगीत महल में आज भी वही स्वर लहरियां सुनाई देती है। हमारे वहाँ पहुँचने पर नंगे पाँव और बेहद लम्बी बांसुरी लिए एक ग्रामीण न जाने कहाँ से आ गया। धुन बजने लगी और तारीखें उलटी दौड़ पडी। इतिहास फिर जी उठा ।
बारिश के मौसम में नज़ारा में अलग ही रूमानियत घुल जाती है। हवा पर सवार ठंडी बुँदे, बादलों के बीच लुक्का छुपी और हरे मैदानों, झीलों का नज़ारा। खामोशीयाँ भी मानो गीत सुनाते है यहाँ। मन करता है यहीं बस जाने का ... पर क्या करें सफ़र चलता रहा, ज़िन्दगी रुकी नहीं ।
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