बहुत ज़माने से “शमा और परवाने” की मोहब्बत का किस्सा मैंने सुना था…मगर हर किसी ने बस परवाने के दीवानेपन को लिखा है और हमने भी बस उसके मोहब्बत में फ़ना हो जाने के जज्बे को जाना ..पर एक दिन यूँ ही एक महफिल में शमा से जो कुछ गुफ्तगू हुई तो शमा के मर्म को मैंने समझा…यदि आप तक पहुंचा दूं तो समझूगा की अब कलम इतराना सीख गयी है…
मोहब्बत तो शमा को भी थी परवाने से
इसलिए तो ज़माने से जल रही थी
बस कहती न थी, मगर उस रोज़ जो उसने देखा
कि वो परवाना सारी रात जाग उसे ताकता रहा
तो उससे रहा न गया,कर दिया इज़हार-ए-मोहब्बत
कह दी दिल कि बात,और परवाने ने
जैसे ही उसे छूने को बढाया अपना हाथ
वो जलकर राख हो गया…वो जलकर राख हो गया
इसलिए तो ज़माने से जल रही थी
बस कहती न थी, मगर उस रोज़ जो उसने देखा
कि वो परवाना सारी रात जाग उसे ताकता रहा
तो उससे रहा न गया,कर दिया इज़हार-ए-मोहब्बत
कह दी दिल कि बात,और परवाने ने
जैसे ही उसे छूने को बढाया अपना हाथ
वो जलकर राख हो गया…वो जलकर राख हो गया
इंतज़ार तो किनारों को भी था लहरों का
मगर खुद को रोके हुए थे
पर उस रोज़ जो उसने देखा कि
चली आती है कोई लहर छितिज पार से
बस एक उसके चुम्बन कि ख्वाहिश लिए
तो उसने सोचा ज़रा बढ़कर थाम लूं इसे
मगर लहर के टकराते ही, लहर का
वजूद खाख हो गया…वजूद खाख हो गया
मगर खुद को रोके हुए थे
पर उस रोज़ जो उसने देखा कि
चली आती है कोई लहर छितिज पार से
बस एक उसके चुम्बन कि ख्वाहिश लिए
तो उसने सोचा ज़रा बढ़कर थाम लूं इसे
मगर लहर के टकराते ही, लहर का
वजूद खाख हो गया…वजूद खाख हो गया
हमारी मोहब्बत को इसकी पाखियत को
जो बनाये हुए है,वो वही है
हमारे दरमियान जो थोडी दूरी है…
दिल में है बेकरारी तभी तक,
इश्क में है खुमारी तभी तक
जब तक चंद ख्वाहिशें अधूरी है…
हर मोहब्बत के आगाज़ का
अंजाम नहीं ज़रूरी है…
अंजाम नहीं ज़रूरी है…
जो बनाये हुए है,वो वही है
हमारे दरमियान जो थोडी दूरी है…
दिल में है बेकरारी तभी तक,
इश्क में है खुमारी तभी तक
जब तक चंद ख्वाहिशें अधूरी है…
हर मोहब्बत के आगाज़ का
अंजाम नहीं ज़रूरी है…
अंजाम नहीं ज़रूरी है…
-रोहित अग्रवाल-
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