मंगलवार, 11 सितंबर 2012

शिक्षा - सबके लिए


                                                       -सुरेन्द्र जयपाल surendrajaipal2010@gmail.com
अहा !! क्या सुंदर नज़ारा है स्कूल का,
टीचर के सवालों और बच्चों के आन्सर्स कूल का....

पर यह कौन है जो दूर खड़ा है ?
खिड़की से क्लास मे झाँकने की ज़िद पे अड़ा है..

टीचर का एक शब्द भी जब दिमाग़ में इसके दौड़ा करता है.
क्षण भर के लिए मिट्टी पर उभरकर, फिर ओझल हो जाता है...

न जाने क्या अरमान हैं उसके दिल में भरे....
दुनिया के साथ भी,और दुनिया से ही परे..

बीच में ही घंटी बजी...
बच्चों की मस्ती की नयी दुनिया सजी....

कभी पेन से एक दूजे पर वार..
कभी कागज़ी एरोप्लन से होता वॉर....

तभी खिड़की से एक एरोप्लेन बाहर गिरता है..
उन बच्चो के चेहरे पर सतरंगी इंद्रधनुष उभरता है..

वो भाग के एरोप्लेन अपने हाथ मे लेता है...
खोल कागज और उस पर टीचर के शब्द उकेरने का कर्म देता है..

पर ये क्या?? इसके पास तो कुछ भी नही..
खाली पेन,टूटी पेन्सिल,खराब रबर के सिवा कुछ नही...

तभी इसके चेहरे पर मुस्कान चमकती है...
पर पास पड़े कचरे के ढेर मे जब पेन की टिप दमकती है...

क्या ऐसे बच्चों का तुम पर है नही कोई अधिकार?
तुम चाहो तो मानो, मैं तो नही करता इससे इनकार...

अब लाए जो हम शिक्षा का अधिकार..
पर बिना तुम्हारी मदद के कैसे करेगा वो इनके सपने साकार....

करो मदद किसी ऐसे एक की तुम यार...
ताकि हो जाए इनका भी जीवन उद्धार..

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